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॥१०३॥
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अर्थ जहां ज्ञान भाव है, तहाँ शुद्ध चारित्रकी रीत (वैराग) है । ताते ज्ञान होय तवही ज्ञान अर वैराग्य मिलिके, मोक्ष मार्ग साधे है ॥ ८२ ॥
॥ अव ज्ञान अर क्रिया ऊपर अंध अर पंगुका दृष्टांत कहे है ॥ दोहा ॥ॐ यथा अंधके कंध परि, चढे पंगु नर कोय।याके हग वाके चरण, होय पथिक मिलि दोय ॥३॥ ॐ जहां ज्ञान क्रिया मिले, तहां मोक्ष मग सोय। वह जाने पदको मरम, वह पदमें थिर होय ||४|| ६ अर्थ-जैसे अंध मनुष्यके कंध ऊपर पंगु मनुष्य बैठे । जब पांगुला मनुष्य नेत्रते मार्ग दिखावे १. है, अर अंध मनुष्य पावसे चले है, ऐसे दोऊ मिलिके मार्गकी कार्य सिद्धि होय हे ॥ ३ ॥ तैसे : हैं जहां ज्ञान अर क्रिया (वैराग्य ) ये दोनूं मिले है तहां मोक्ष मार्ग है । ज्ञान है सो आत्माका खरूप ६ जाने है अर वैराग्य है सो आत्मस्वरूपमें स्थिर है ॥ ८४ ॥
___॥ अव ज्ञानका अर कर्मका स्वरूप कहे है ॥ दोहा ।है ज्ञान जीवकी सजगता, कर्म जीवकू भूल । ज्ञान मोक्ष अंकूर है, कर्म जगतको मूल ॥ ८५॥
ज्ञान चेतनाके जगे, प्रगटे केवल राम । कर्म चेतनामें वसे, कर्म वंध परिणाम ॥ ८६ ॥ ॐ अर्थ ज्ञान है सो जाग्रत अवस्था है ते जीवकू जगावे है अर कर्म है सो निद्रा अवस्था है ।
ते जीवकू भुलावे है। ज्ञान है सो मोक्षका अंकूर (कारण) है अर कर्म है सो भवभ्रमणका मूल है ॥५॥ । ज्ञान चेतनाके जाग्रत होते शुद्ध आत्मस्वरूप प्रगटे है । अर कर्म चेतनामें आत्मा कर्मबंध होने है ॐ योग्य परिणाम उपजे है ॥ ८६ ॥
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