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समय
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अर्थ — जीवके लक्षण भेद नही है सब जीव एक समान है ताते वेदपाठीने माना सो अद्वैत अंग सत्य है अर 'जीवके उदयमें अनेक गुणके तरंग ऊठे है ताते मीमांसक मतवालेने माना सो उदय अंग सत्य है, जीवमें अनंत शक्ती है सो जहां तहां गतीमें प्रवर्ते है ताते नैयायिकमतने माना उद्धत अंग सत्य है । जीवका पर्याय क्षण क्षणमें बदले है ताते बौद्धमतीने माना क्षणीक अंग सत्य है, जीवके परिणाम सदा चक्र समान फिरे है तिसकूं काल द्रव्य साह्य है ताते शिवमंतीने माना काल अंग सत्य है। ऐसे आत्म द्रव्यके अनेक अंग है, तिसमें एक अंग माने अर एक अंग नहि माने सो एकांत पक्ष धरनेवाला कुमती है । अर एकांत पक्षकूं छोडि जीवके सर्वागकूं खोजे ( धुंडे ) है सो सुमति है, खोजी जीवे वादी मरे यह कहावत है सो सत्य है ॥ ४४ ॥ ॥
॥ अव स्याद्वादका स्वरूप कथन करे है । सवैया ३१ सा ॥ --
एक अनेक है अनेकही में एक है सो, एक न अनेक कछु कह्योन परत है ॥ करता अकरता है भोगता अभोगता है, उपजे न उपजत मरे न मरत है ॥ बोलत विचरत न बोले न विचरे कछु, भेखको न भाजन पै भेखसो घरत है ॥ 'ऐसो प्रभु चेतन अचेतनकी' संगतीसो, उलट पलट नट वाजीसी करत है ॥ ४५ ॥ अर्थ — एक द्रव्यमें अनेक पर्याय है अर अनेक पर्यायमें एक द्रव्य है, याते हर कोई वस्तु सर्वथा एक है अथवा सर्वथा अनेक है ऐसे कह्या नहि जाय हैं । ( कथंचित एक है अथवा कथंचित अनेक है; ऐसे कह्या जाय हैं) व्यवहारते जीव कर्त्ता है अर निश्रयते अकर्त्ता है तथा व्यवहारते भोक्ता है' अर· निश्चयते-अभोक्ता है, व्यवहारते उपजे है अर निश्चयते नहि उपजे है तथा व्यवहारते
सार
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अ० १०
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