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मरे है अर निश्चयते नहि मरे है । व्यवहारते बोले हैं तथा विचरें है अर निश्चयते बोलेहूं नही तथा चालेहूं नही है, व्यवहारते देह धरे है अर निश्चयते देहका पात्र नही है । ऐसा जो श्रेष्ठ चेतन ( आत्मा ) है सो पुद्गलकर्म के संगतीसे, व्यवहार अर निश्चयमें उलट पटले हो रह्या है मानू नट | जैसा खेल कर रह्या है ॥ ४५ ॥
|| अवं अनुभवका स्वरूप कहे है ॥ दोहा ॥ - नट बाजी विकलप दशा, नांही अनुभौ योग । केवल अनुभौ करनको, निर्विकल्प उपयोग ॥४६॥ | अर्थ — जीवका नट सारखा उलट पलट खेल है सो विकल्प दशा है, सो विकल्प दशा आत्मानुभवमें योग्य नही है । आत्मानुभव करनेकूं, केवल एक निर्विकल्पदशा उपयोगी है ॥ ४६ ॥ ॥ अब आत्मानुभवमें विकल्प त्यागनेकूं दृष्टांतते कहे है ॥ सवैया ३१ ॥
जैसे काहु चतुर सवारी है मुकत माल, मालाकि क्रियामें नाना भांतिको विग्यान है ॥ क्रियाको विकलप न देखे पहिरन वारो, मोतीनकि शोभा में मगन सुखवान है | तैसे न करे न भुंजे अथवा करेसो भुंजे, ओर करे और भुंजे सव नै प्रमान है || यद्यपि तथापि विकलप विधि त्याग योग, नीरविकलप अनुभौ अमृत पान है ||४७||
अर्थ - जैसे कोई चतुर मनुष्य मोतीनकी माला नाना प्रकारके कल्पनासे बनावे है । पण माला |पहेरनेवाला - तिस कल्पना के विचारकूं नही देखे है, मालाके शोभामें मग्न होके सुखी होय है । तैसे आत्मा | कर्म करे नही अर फल भोगवे नहीं अथवा कर्म करे है अर फल भोगवे है, अथवा कर्म करे एक अर