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AURORIKO RISIR
al गुरु कहे छहो द्रव्य अपने अपने रूप, सवनिको सदा असहाई परिणोंण है ॥
कोउ द्रव्य काहुको न प्रेरक कदाचि ताते, राग देष मोह मृपा मदिरा अचान है ॥६०॥
अर्थ-कोई शिष्य गुरूकू पूछे हे स्वामि ? आत्माकू राग द्वेपरूप जे परिणाम उपजे है, तिस परिणामकू मूल कारण-पुद्गलकर्मका संयोग है अथवा इंद्रियनिके विषय भोग है अथवा धन है अथवा परिवारजन है अथवा घर है सो तुम कहो । तब गुरू कहे हे शिष्य ? तुने जो राग द्वेषके कारण कहे सो नही है-छहों द्रव्य सदाकाल अपअपने स्वभावरूप परिणमें है, अर सब द्रव्यङ्घ परस्पर
असहाईपणा है। कोई द्रव्य काहू द्रव्य• कदाचित साह्य नही करे है, ताते राग अर द्वेष• मूल || कारण है सो मोह मिथ्यात्वरूप मदिराका पीवना है ॥ ६ ॥
॥ अव राग अर द्वेपवि अज्ञानीका विचार कहे है ॥ दोहा ॥कोउ मूरख यों कहे, राग द्वेष परिणाम । पुद्गलकी जोरावरी, वरते आतम राम ॥ ६१ ॥ | ज्यों ज्यों पुद्गल वल करे, धरिधरि कर्मजु भेष । राग द्वेपको परिणमन, त्यो त्यों होय विशेष ॥६२||
अर्थ-कोई अज्ञानी कहे की, रागद्वेषके परिणाम है सो पुद्गलकर्मके जबरीते, आत्मामें है ॥६॥ जैसे जैसे पुद्गलकर्म, उदयकू आय बल करे । तैसे तैसे रागद्वेषके परिणाम विशेष होय है ॥ ६२ ॥
. ॥ अव अज्ञानीकू सुगुरू समझावे है ॥ दोहा॥इहविधि जो विपरीत पक्ष, गहे सद्दहे कोइ । सो नर राग विरोधसों, कवहूं भिन्न न होइ ॥३॥ | सुगुरु कहे जगमें रहे, पुद्गल संग सदीव । सहज शुद्ध परिणामको, औसर लहे न जीव ॥६॥
SABIERASAARIRLO
रबर २ बरकर
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