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नी करतूति, वहै नट भिन्न विलोकत पेखे ॥
| सार. ____न राव, विभाव दशा धरि रूप विसेखे ॥
अ०९ लखे अपनो पद, दुद विचार दशानहि लेखे ॥ १३ ॥ नट बहुत प्रकारके सोंग धरे है, अर ते ते सोंगकी बतावणी जब करे है ।
है । तथा वह नटहू अपने अनेक सोंगके कर्तव्यकू आप देखे है परंतु । - स्वरूप भिन्न जाने है । तैसेही घटमें चेतनराव नट है सो रागादिक अनेक
रण करि बहुत रूप करे है । परंतु जब सुज्ञान दृष्टि खोलि अपना स्वरूप आप ऊलखे ५ .., रागादिक विभाव दशाकू आपनी नहि जाने है ॥ १३ ॥
॥ अव चेतनके भाव ग्रहण करना औरके भाव त्यागना सो कहे है ॥ छंद अडिल्ल ॥जाके चेतन भाव चिदातम सोइ है । और भाव जो धरे सो और कोई है ॥
जो चिन मंडित भाव उपादे जानने । साग योग्य परभाव पराये मानने ॥ १४ ॥ है अर्थजिसमें चेतन भाव है सोही चिदात्मा है, अर चेतन विना जे भाव है सो पुद्गलके भाव *
है । ताते चेतनायुक्त जे भाव है सो स्वभाव जानकर तिसकू ग्रहण करनां योग्य है, अर चेतन विना है अन्य जे भाव है सो परभाव मानकर तिसकू त्याग करना योग्य है ॥ १४ ॥ ॥ अव भेदज्ञानी मोक्षमार्गका साधक है सो कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥
॥८ ॥ जिन्हके सुमति जागि भोगसों भये विरागि, परसंग सागि जे पुरुष त्रिभुवनमें ॥ रागादिक भावनिसों जिन्हकी रहनि न्यारि, कबहु मगन व्है न रहे धाम धनमें ॥
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