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अर्थ-कोई-मूढ एकांत पक्षः ग्रहण करके कहेकी, आत्मा पूर्ण' पवित्र है । सो कर्मका कर्ता नही है। तिन मूढसे कोऊ.कहे कर्मका कर्ता जीव है, तो फेर मूढ कहें कर्मका कर्त्ता कर्म है.जीव नही है। || ऐसे मिथ्यात्वमें मग्न है सो मिथ्यात्वी जीव ब्रह्मघाती है, तिनके हृदयमें अनादिका मोह भ्रम है। तिस अज्ञानीका.भ्रम दूर करनेकू, गुरू आत्माका स्वरूप स्याहादप्रमाणते कहे है ॥२५॥
॥ अब स्याद्वाद प्रमाणते आत्मस्वरूप कहे है॥ दोहा ।चेतन करता भोगता, मिथ्या मगन अजान ।।
नहिं करता नहि भोगता, निश्चै सम्यकवान ॥ २६ ॥ SE: अर्थ-जो जीव अज्ञानतासे मिथ्यात्वमें मग्न है, सो कर्मका कर्त्ता तथा भोक्ता है । अर जो 5 भेवज्ञानी सम्यक्ती है सो कर्मका कर्ताहूं नही है अर भोक्ताहूं नही है, यह निश्चयते प्रमाण है ॥२६॥
॥ अव एकांत पक्ष त्यागवेकू स्याद्वादका उपदेश करे है ॥ ॥ सवैया ३१ सा ॥-- जैसे सांख्यमति कहे अलख अकरता है, सर्वथा प्रकार करता.न होइ कवही ॥ तैसे जिनमति गुरुमुख एक पक्ष सूनि, यांहि भांति माने सो एकांत तजो अवही ॥ जोलों दुरमति तोलों करमको करता है, सुमती सदाअकरतार कह्यो सवही ॥
जाके घट ज्ञायक स्वभाव जग्यो जवहीसे, सो तोजगजालसे निरालो भयोतवही ॥२७ BILE अर्थ-जैसे सांख्यमती कहे की आत्मा अकरता है, कोइ कालमें कर्मका कर्त्ता नही होय है। तैसे.जिनमतीहूं गुरू मुखते निश्चय नयका. एक पक्ष सुनिके, जीव कू. सर्वथा अकर्ता माने है सो हे भव्य ? अब एकांत पक्षकू छोडो। जिनेंद्रके स्यावाद अनेकांत मतमेतो ऐसे कह्या है की-जबतक
SASARAS-SECRECRACRORE
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