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समय
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धरमीकों दंभि निसाहीकों गुमानि कहे, तृपणा घटावे तासों कहे भाग्यहीन है ।। __जहां साधुगुण देखे तिनकों लगावे दोप; ऐसो कछु दुर्जनको हिरदो मलीन है ॥२२॥
अर्थ-सरल परिणाम राखे तिसकू कहे ये मूर्ख है अर बोलनेमें जो हुपार है तिसकू कहे ये 5 धीठ है, विनय करे तिसकू कहे ये धनके आधीन है। क्षमा करे तिसकू कहे ये निर्बल है अर इंद्रिय
दमन करे तिसकू कहे ये कृपण है, मधुर वचन बोले तिसकू कहे ये गरीब है। धर्मात्मा है तिसकू
कहे ये दंभी ( कपटी) है अर निस्पृही है तिसकू कहे ये अभिमानी है, परिग्रह छोडे है तिसकू कहे 8 । ये भाग्यहीन है। जहां सद्गुण देखे तहां दोष लगावे है, ऐसा दुर्जनका हृदय मलीन है ॥ २२ ॥
॥ अव मिथ्यादृष्टीके अहंवुद्धीका वर्णन करे है ॥ चौपई ॥ दोहा ॥ सवैया ३१ सा - __मैं करता मैं कीन्ही कैसी। अव यों करो कहे जो ऐसी ॥
ए विपरीत भाव है जामें । सो वरते मिथ्यात्व दशामें ॥ २३ ॥ ___ अहंबुद्धि मिध्यादशां, धरे सो मिथ्यावंत । विकल भयो संसारमें, करे विलाप अनंत ॥२४॥ ___ अर्थ-मैं कर्ता मनुष्यहू देखो. हमने यह कैसा काम कीया है ऐसा काम दुसरेसे नहि बनसके, । अबहू हम जैसा कहेंगे तैसाही करेंगे । ऐसा जिसमें अहंकारके वशते विपरीत भाव है, सो
मिथ्यात्व अवस्था है ॥२३॥ ऐसे अहंबुद्धि मिथ्यात्वअवस्थाकों जो धारण करे है सो मिथ्यात्वीजीव ॐ है। सो संसारमें विकल होय भटके है अर अनंत दुःख सहता विलाप करे है ॥ २४ ॥
रविके उदोत अस्त होत दिन दिन प्रति, अंजुलीके जीवन ज्यों जीवन घटत है ॥ कालके ग्रसत छिन छिन होत छिन तन, आरेके चलत मानो काठ ज्यों कटत है ॥
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