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सार
॥७७॥
समय- है। ऐसेही क्षणक्षणमें मोह अंधकार मिटावे है, तब सूर्यसे श्रेष्ठ अर सब ज्ञानमें प्रधान ऐसी केवलज्ञानकी
6 ज्योति जाग्रत होय है । तथा अनंत शक्ति प्रगटे है सो फेर नाश नहि पावे अर कर्म नोकर्मसे छिपे है • नहीं है, सो अनंत शक्ती मोक्ष स्थानकू पोहोचावे है ते काहूसे रुके नहीं ॥ ५७ ॥ दोहा ॥र बंधद्वार पूरण भयो, जो दुख दोष निदान । अब वर' संक्षेपसे, मोक्षदार सुखथान ॥५०॥ र अर्थ-दुःखका अर दोषका कारण ऐसा बंधद्वार पूर्ण भया । अब सुखका स्थान जो मोक्षद्वार है। 1 सो संक्षेपते वर्णन करूंहू ॥ ५८ ॥
॥ इति श्रीसमयसार नाटकको अष्टम बंधद्वार बालबोध सहित समाप्त भया ॥ ८॥
SACROSRIGANGRE
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