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64GLOGUE
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॥ अव आत्माकी शुद्ध चाल कहे है ॥ सवैया २३ सा ॥जो जगकी करणी सब ठानत, जो जग जानत जोवत जोई ॥ देह प्रमाण 4 देहसुं दूसरो, देह अचेतन चेतन सोई ॥
देह घरे प्रभु देहसुं भिन्न, रहे परछन्न लखे नहि कोई ॥ __ लक्षण वेदि विचक्षण बूझत, अक्षनसों परतक्ष न होई ॥ ३६॥ अर्थ-जो इस जगतकी समस्त करणी ( चतुर्गतीमें गमनादि ) है सो करे है, अर जो जगतकं जाणे है अर देखेहू है। जो अपने देह प्रमाण है परंतु देहते दूजा है, देह अचेतन (ज्ञानशून्य ) है | अर आत्मा. है सो चेतन ( ज्ञानवान ) है । देह रूपी है अर प्रभू (आत्मा) अरूपी है, आत्मा देहा धरे है परंतु देहसे भिन्न है ढकि रहे है इसकू कोई देखे नही । इस आत्माके जे लक्षण हैं तिस लक्षणकू जाणि ज्ञानी मनुष्य आत्माकू ऊलखे है, पण नेत्र इंद्रियते प्रत्यक्ष दृग्गोचर नहि होय ॥३६ ॥
॥ अव देहकी चाल कहे है ॥ सवैया २३ सा ।।देह अचेतन प्रेत दरी रज, रेत भरी मल खेतकि क्यारी ॥ व्याधीकि पोट आराधीकि ओट, उपाधीकि जोट समाधिसों न्यारी॥ रे जिय देह करे सुख हानि, इते पर ती तोहि लागत प्यारी॥
देह तो तोहि तजेगि निदान पैं, तूंहि तजे क्युं न देहकि प्यारी ॥ ३७॥ al अर्थ-देह है सो प्रेतवत् अचेतन है तथा रक्त अर रेतकी भरी गुफा है, अर मल मूत्र उपजनेकी
खेतकी वाडी है । रोगकी पोटडी है अर आत्माकू छुपावनेकू आगळ है, क्लेशकी झुंड है असमाधानी
SALOSSA ESSES