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समय
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। अर्थ-इस जीवके जबतक अष्ट कर्मका नाश सर्वस्वी नहि होय है, तबतक मोक्ष नहि होय अर P अंतरात्मामें दोय धारा प्रवर्ते है । एक ज्ञानकी धारा है अर एक शुभ अशुभ कर्मकी धारा है, इस
दोऊ धाराकी प्रकृति ( स्वभाव ) न्यारी न्यारी है तथा इसका स्थान पण न्यारा न्यारा है । इसमें । 8 इतना विशेष भेद है की जो कर्मकी धारा है सो बंधन रूप है, अर शक्ती• पराधीन करनेवाली है ।
तथा प्रकृतिबंध स्थितिबंध प्रदेशबंध अर अनुभागबंध ऐसे नाना प्रकारका अगाने बंध करानेवाली है। है अर जो ज्ञान धारा है सो मोक्ष स्वरूप है ते मोक्षकी करनहारी है, तथा कर्म दोष मात्रकू हरनहारी 5 • अर भवरूप समुद्रकू तरनहारी नाव समान है ॥ १४ ॥
॥ अव मोक्ष प्राप्ति ज्ञान अर क्रिया ते होय ऐसा जो स्याद्वाद है तिनकी प्रशंसा करे है ॥ ३१ सा ॥__ समुझे न ज्ञान कहे करम कियेसों मोक्ष, ऐसे जीव विकल मिथ्यातकी गहलमें ॥ ___ ज्ञान पक्ष गहे कहे आतमा अबंध सदा, वरते सुछंद तेउ डुवे है चहलमें ॥
जथा योग्य करम करे मैं ममता न धरे, रहे सावधान ज्ञान ध्यानकी टहलमें ॥
तेई भव सागरके उपर व्है तेरे जीव, जिन्हको निवास स्यादवादके महलमें ॥१५॥ व अर्थ-जे क्रियावादी है ते कहे है की ज्ञान भला नही जिसमें संशय उपजे है अर संशयसे
जीव न इधर न उधर ऐसी अवस्था बने है ताते क्रियाके करनेसेही मोक्ष होय है, ऐसे ज्ञान विना र क्रियासे मोक्षप्राप्ति माननेवाले जीव मिथ्यात्वके गहलसे विकल भया संसारमें भ्रमे है । अर जे ज्ञान। वादी है ते ज्ञानका पक्ष ग्रहण कर कहे की बंध तथा मोक्ष प्रकृतिमही है अर आत्मा सदा अबंध है, हूँ ऐसे क्रिया विना ज्ञानसे मोक्षप्राप्ति माननेवाले जीव क्रियाहीन होय स्वच्छंद ( मर्जी माफक ) प्रवर्ते है ”
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