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अर्थ-जैसे कर्दमके कुंड पड्या हाथी निकलनेकू उद्यम करे है परंतु तो दुःखमेसे छूटे नही । से ॐ अथवा जैसे धीवरके डाय लोहके कांटेसे फसा मच्छ दुःख सहे पण छूटतो नही । अथवा जैसे * ॐ महा तापसे मस्तक पीड्या नर ग्रहकार्य करनेकू उठशके नही । तैसे ज्ञानवंत हित अर अहित सब जाने ६ परंतु तिसके स्वाधीन कछु नहीहै पूर्व कर्मके उदयरूप फंदसे बंध्यो फिरे है ॥ ७ ॥
॥अब आलसीका अर उद्यमीका स्वरूप कहे है ॥ चौपई ॥
जे जीव मोह नींदमें सोवे । ते आलसी निरुद्यमी होवे ॥ . . दृष्टि खोलिजे जगे प्रवीना। तिनि आलस तजि उद्यम कीना ॥ ८॥ ___अर्थ जे जीव मिथ्यात्वरूप मोह नींदमें सोवे है ते आलसी तथा निरुद्यमी होवे है । अर जे 5 जीव ज्ञान दृष्टि खोलिके जाग्रत भये है तिनोंने आलस तजिके पुरुषार्थ कीया है ॥८॥
॥ अव आलसीकी अर उद्यमीकी क्रिया कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥काच बांधे शिरसों सुमणि बांधे पायनीसों, जाने न गवार कैसामणि कैसा काच है। योंहि मूढ झूठमें मगन झूठहीकों दोरे, झूठ बात माने पै न जाने कहां साच है ॥ . मणिको परखि जाने जोहरी जगत मांहि, साचकी समझ ज्ञान लोचनकी जाच है॥ .
जहांको जुवासी सोतो तहांको परम जाने, जाको जैसोखांगताकोतैसे रूपनाच है ॥९॥ ___ अर्थ-जैसे दिवाना होय सो काचकू मस्तक उपर बांधे अर रत्नकू पाय ऊपर बांधे, काचकी ६ अर रत्नकी क्या कीमत रहती है सो जाने नही । तैसेही अज्ञानी है सो झूटमें मग्न रहे अर झूठकाम * हूँ करने• दौरे है, तथा झूठळू साच माने पण इसमें क्या साच है सो जाने नही । अर जैसे जगतमें !
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