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झवेरी होय सो नेत्रते काचकी अर रत्नकी परिक्षा करे है तथा कीमत जाने है, तैसेही ज्ञानी है सो दिया ज्ञानरूपी नेत्रते सत्य अर असत्यकी कीमत जाने है अर परीक्षा करे है। मिथ्यात्वी मिथ्यात्वकू साचा माने है अर सम्यक्ती सम्यक्त• साच माने है, जो जैसा स्वांग धरे है सो तैसाही नाच नाचे है ॥ ९ ॥
॥ अव जे जैसी क्रिया करे ते तैसे फल पावे है सो कहे है ॥ दोहा ।S बंध बढावे अंध व्है, ते आलसी आजान । मुक्त हेतु करणी करे, ते नर उद्यम वान ॥१०॥ || अर्थ:-अज्ञानी है ते आळसी होके अंध होय है अर कर्मका बंध बढावे है । अर मुक्तिके कारण जे क्रिया करे है ते मनुष्य उद्यमवान है ॥ १०॥ ,
॥अव जवलग ज्ञान है तवलग वैराग्य है सो कहे है । सवैया ३१ सा ।जवलग जीव शुद्धवस्तुको विचारे ध्यावे, तवलग भोगसों उदासी सरवंग है ॥ भोगमें मगन तब ज्ञानकी जगन नाहि, भोग अभिलाषकि दशा मिथ्यात अंग है ॥ ताते विषै भोगमें मगनसों मिथ्याति जीव, भोगसों उदासिसों समकीति अभंग है। ऐसे जानि भोगसों उदासि व्है सुगति साधे, यह मन चंगतो कठोठी मांहि गंग है॥ ११ ॥
अर्थ-जबलग जीवशुद्धवस्तुके विचारमें दौडे है, तबलग सर्व अंगमें भोगसे उदासीनपणा रहे है। अर जब भोगमें मग्न होय तब ज्ञानकी जानती नही होय अर अंगमे भोगकी इच्छारूप अज्ञानअवस्था रहे है । ताते विषयभोगमें मग्न है सो मिथ्यात्वीजीव है, अर भोगसे उदासीन है सो अभंग सम्यग्दृष्टी है। ऐसे जानि हे भव्य ? भोगसे उदासीन होके मुक्तिका साधन करो, जिसका मन शुद्ध है तिसका कठोटीमें न्हाना है सो गंगास्नानवत है ॥ ११॥
BERLOSARI ROGASKOSSAARESSURSLAR
GROSIOS SE REASONSESSELSCRARILOCOS
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