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सार.
जाना
समय॥५१॥
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जाने निज मरम मरण तब सूझे झूठ, वूझे. जव और अवतार रूप होइके ॥
वाही अवतारकि दशामें फिर यह पेच, याहि भांति झूठो जग देखे हम ढोइके ॥१७॥ 5 अर्थ-जब जीव सूतो होय तब स्वप्न लगे तिस तिस स्वप्नकुं नीदमे सत्य समझे अर नींदसे ६ जागो होय तब वो स्वप्न झूठा माने है । अर देहादिक सकल सामग्रीकू मेरी मेरी कहे है, परंतु अपने स्मरणका विचार सूजे तव देहादिक सकल सामग्रीषं हूं झूठ माने है । अर आत्मस्वरूपका मर्म जाने
तब मरण पण झूठ दीखे है और दुसरा जन्म लेय तब फेर ऐसेही जाने है। सूता-जागता, साचामें झूठा इत्यादि पेच आगली रीतेज लागे रहे है, ऐसे वारवार जन्म लेना अर मरणा है सो चौकसी करि देख्या तो सब जगत झूठाही झूठा दीखे है ॥ १७ ॥
॥ अव ज्ञाता कैसी क्रिया करे है सो कहे है । सवैया ३१ सा ॥पंडित विवेक लहि एकताकी टेक गहि, दुंदुज अवस्थाकी अनेकता हरतु है ॥ मति श्रुति अवधि इत्यादि विकलप मेटि, नीरविकलप ज्ञान मनमें धरतु है ॥ इंद्रिय जनीत सुख दुःखसों विमुख व्हेके, परमके रूप व्है करम निर्जरतु है ॥
सहज समाधि साधि त्यागी परकी उपाधि, आतम आराधि परमातम करतु है ॥ १८ ॥ ___ अर्थ-पंडितजन है सो भेदज्ञानते आत्माकी ऐक्यता राखे है, अर प्रथम अज्ञान अवस्था में ६ देहादिककू आत्मरूप जाननेकी द्वंददशा ( अनेकता ) थी ताकू दूर करे है। तथा मति श्रुति अवाध
इत्यादि ज्ञानावणी कर्मके क्षयोपशम जनित विकल्पकू मिटावे है, अर निर्विकल्प केवलज्ञानकू मनमें 5 धारण करे है । इंद्रिय जनित सुखदुःखसे विमुख होयहै, अर शुद्ध आत्मानुभवते कर्मकी निर्जरा करे 8
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