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BI अर्थ "आत्म वस्तु है सो शुद्ध ज्ञानमय है, अविरोधी है, अर सिद्धसमान ऋद्धिवंत है । अगम्य है। ||अनादि है, अनंत है, अतुल अर अविचल है ऐसाही मेरा स्वरूप है । सो ज्ञान विलासते प्रकाश युक्त || है, अर विकल्प रहित सुखका स्थान है। जिसमें कोई प्रकारकी द्विधा नहीं, तिसमें कोई प्रकारका
अचानकभय पण कछु नही होयसके । जब ऐसा विचार करे तब अकस्मातभय नहि उपजे । ज्ञानी है |सो, निशंक रहे अर कलंक रहित अपने ज्ञानरूप आत्माका सदा अवलोकन करे ॥ ५५ ॥
॥ अव निशंकितादि अष्टांगसम्यक्तीकी महिमा कहे है ॥ छपै छंद ॥जो परगुण त्यागंत, शुद्ध निज गुण गहंत ध्रुव । विमल ज्ञान अंकुरा, जास घटमांहि प्रकाश हुव । जो पूरव कृतकम, निर्जरा धारि वहावत ।
जो नव बंध निरोधि,मोक्ष मारग मुख धावत । निःशंकितादि जस अष्ट गुण, ' अष्ट कर्म अरि संहरत। सो पुरुष विचक्षण तासु पद,बनारसी वंदन करत॥५६।।
अर्थ जो पुद्गलके गुणोकू त्याग करके आत्माके गुणोकू ग्रहण करे है। जिसके हृदयमें सम्यग् ज्ञानके अंकुराका प्रकाश हुवा है। जो पूर्वीके कृतकर्मकू निर्जराके धारामें वहावे है । अर नवीन बंधवं निरोध करिके मोक्षमार्गके सन्मुख दौडे है । अर जो निःशंकितादि अष्ट गुणते अष्ट कर्मरूप वैरीका संहार करे है । सोही सम्यग्ज्ञानी पुरुष है तिसके चरणनकौं बनारसीदास वंदना करे है ॥ ५६ ॥
॥ अव निशंकितादि अष्ट अंगके (गुणके)नाम कहे है ॥ सोरठा ॥प्रथम निसंशै जानि, द्वितीय अवंछित परिणमन । तृतीय अंग अगिलान, निर्मल दृष्टि चतुर्थ गुण ॥ ५७॥