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करे सो काहेकी भली है] ये दोनूहूं क्रिया मोक्षमार्गके विचारमें बाधक. है याते दोनूहं क्रियाका निषेध कीया ॥ १२ ॥
____अव ज्ञान मात्र मोक्षमार्ग है सो कहे है ॥ सवैया ३१ सा॥ मुकतिके साधककों बाधक करम सव, आतमा अनादिको करम मांहि लूक्यो है ॥ येतेपरि कहे जो कि पापबुरो पुन्यभलो, सोइ महा मूढ मोक्ष मारगसों चुक्यो है॥ सम्यक् खभाव लिये हियेमें प्रगट्यो ज्ञान, उरध उमंगि चल्यो काहूं न रुक्यो है ॥
आरसीसो उज्जल बनारसी कहत आप, कारण स्वरूप व्हैके कारिजको ढूक्यो है ॥ १३ ॥ || अर्थ-आत्मा मुक्तिका साधक है तिसको सब कर्म बाधक. (घातक ) है, ताते आत्मा अनादि 8 कालते कर्ममें दबि रह्या है। ऐसे होतेहूं जो कोई कहे पाप बुरा है अर पुन्य भला है, सो महा मूढ है मोक्ष मार्गसे चूक्या है। अर जब कोई जीवके सम्यक्तकी प्राप्ति होय हृदयमें ज्ञान प्रगट होय है, तब सो जीव उर्ध्व गमन करे है कोई कर्मादिकते रुके रहे नही है। अर आरसी समान उज्जल | ऐसा केवलज्ञान कारण प्राप्त होय, सिद्धरूप कार्य• आपही करें है ऐसे बनारसीदास कहे है ॥ १३ ॥
॥ अव ज्ञानका अर कर्मका व्यवरा कहे है ॥ सवैया ३१ सा॥जोलों अष्ट कर्मको विनाश नांही सरवथा, तोलों अंतरातमामें धारा दोई वरनी ॥ एक ज्ञानधारा एक शुभाशुभ कर्मधारा, दुहूकी प्रकृति न्यारी न्यारी न्यारी धरनी ॥ इतनो विशेषजु करम धारा बंध रूप, पराधीन शकति विविध बंध करनी॥ ज्ञान धारा मोक्षरूप मोक्षकी करनहार, दोपकी हरनहार भौ समुद्र तरनी ॥ १४ ॥
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