________________
%
%
समय॥१०॥
%
4
-4-
4
EGAONGRESSANSARRESSNESCOREIGRIHAGRICRACK
अतुल अखंड मल रहितः सदा उद्योत,, ऐसे ज्ञान भावसों विमुख मूढमती है। सार. आगम संभाले दोष टाले व्यवहार भाले, पाले व्रत यद्यपि तथापि अविरती है। अ०१०
आपको कहावे, मोक्ष मारगके अधिकारी, मोक्षसे सदैव रुष्ट दुष्ट दुरगती है ॥११॥ - अर्थ-केई मिथ्यादृष्टी ,जीव गुरूका उपदेश सुनी जिनमुद्रा (नम भेष ) धारण करे है, अर
आचार क्रियामें मग्न रहे अर लोककू कहे हम यती है। पण जिसकी तुलना नही अखंड अर निर्मल 18 सदा उद्योतवान, ऐसे आत्मानुभवरूप ज्ञान भावसे परान्मुख है ताते मूढमती है । यद्यपि ते सिद्धांत द शास्त्र सुने अर दोष टाळि आहार पान करे तथा बाह्य क्रिया दृष्टी राखे है, महा व्रत पाले है तथापि
अंतरंग मिथ्यात्व परिग्रह है ताते अव्रती है । अर ते आपकू मोक्षमार्गके अधिकारी कहावे है,, १ परंतु मोक्षमार्गसे सदा रुष्ट (विमुख ) है दुःख दुर्गतीमें भ्रमण करनेवाले है ॥ ११८ ॥
॥ अव ज्ञान विना वाह्य क्रिया मूढ कहवाय सो कहे है ॥ चौपाई ॥दोहा॥____ जैसे मुगध धान पहिचाने । तुप तंदुलको भेद न जाने ॥
। तैसे मूढमती व्यवहारी । लखे न बंध मोक्ष विधि न्यारी ॥ ११९ ॥ हूँ जे व्यवहारी मूढ नर, पर्यय बुद्धी जीव । तिनके बाह्य क्रियाहिको, है अवलंब सदीव ॥१२०॥ है कुमति बाहिज दृष्टिसो, वाहिज क्रिया करंत । माने मोक्ष परंपरा, मनमें हरप धरंत ॥१२॥ है शुद्धातम अनुभौ कथा, कहे समकिती कोय। सो सुनिके तासो कहे, यह शिवपंथ न होय ॥१२२॥ ॥१०९॥ * अर्थ-जैसे अज्ञानी धान्यकू पहिचाने पण तुष अर तंदुलकों भेद नहि जाने है । तैसे बाह्य * क्रियामें मग्न मूढमती है सो कर्मबंधकी अर मोक्षकी क्रिया न्यारी न्यारी नहि समझे ॥ ११९ ॥ जे 8
-
%A9-46
%