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समय॥१३२॥
नियतं एक व्यवहारसों, जीव- चतुर्दशः भेद | रंग योग बहु विधि भयो; ज्यों पट सहज सुपेद ॥ ७॥ अर्थ — ऐसे विचार करके, संक्षपते गुणस्थानके चीजकूँ' बनारसीदास वर्णन करे है। मोक्ष मार्गका कारण अर मोक्ष मार्ग़की खोज ( पिछान ) है ॥ ६ ॥ निश्चयते जीव एकरूप है, अर व्यवहारते 'जीव चौदा भेदरूप है । जैसे वस्त्र स्वाभाविक सुपेद है परंतु रंगके संयोगते बहुत प्रकारके होय है ॥ ७ ॥
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• ॥ अव जीवके जे चतुर्दश गुणस्थान है तिनके नाम कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥ प्रथम मिथ्यांत दूजो सासादन तीजो मिश्र, चतुरथ अत्रत पंचमो व्रत रंच है ॥ छट्ठो परमत्त सातमो अपरमत्त नाम, आठमो अपूरव करण सुख संच है ॥ नौमो अनिवृत्तिभाव दशम सूक्ष्म लोभ, एकादशमो सु उपशांत मोह वंच है ॥ दादशम क्षीण मोह तेरहों संयोगी जिन, चौदमो अयोगी जाकी थीति अंक पंच है ॥ ८॥ अर्थ — प्रथमे गुणस्थानका नाम मिध्यात्व है ॥ १ ॥ दूजे गुणस्थानका नाम सासादन है ॥ २ ॥ तीजे गुणस्थानका नाम मिश्र है ॥ ३ ॥ चौथे गुणस्थानका नाम अविरत है ॥ ४ ॥ पांचवें गुणस्थानका नाम अणुव्रत है ॥ ५ ॥ छट्टे गुणस्थानका नाम प्रमत्त ( महाव्रत ) है ॥ ६ ॥ सातवे गुणस्थानका नाम अप्रमत है ॥ ७ ॥ आठवे गुणस्थानका नाम अपूर्व करण सुख संचय है ॥ ८ ॥ नववे गुणस्थानका नाम अनिवृत्ति करण भाव है ॥ ९ ॥ दशवे गुणस्थानका नाम सूक्ष्म लोभ है ॥१०॥ ग्यारवे गुणस्थानका नाम उपशांत मोह है ॥ ११ ॥ वारवे गुणस्थानका नाम क्षीण मोह है ॥ १२ ॥ तेरवे गुणस्थानका नाम सयोगी जिन है ॥ १३ ॥ चौदवे गुणस्थानका नाम अयोगी जिन है ॥ १४ ॥ इस चौदवे गुणस्थानकी स्थिति पंच -हस्व स्वर ( अ इ उ ऋ ऌ) उच्चारखेकूं जितना समय लागे तितनी है ॥ ८ ॥
सार
अ० १३
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