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६ अष्ट महामद अष्ट मल, षट आयतन विशेष । तीन मूढता संयुकत, दोष पचीस एष ॥ ३२ ॥
अर्थ-ज्ञानकी वृद्धि करना, ज्ञानवंत होक्के. हेय अर उपादेयरूप उपदेश देना, दुःखमें धैर्य धरना, । सदा संतोषी रहना, तत्वमें प्रवीण होना, ये सम्यक्तके पांच भूषण है ॥३१॥ आठ महा मद है, आठ मल है, छह आयतन विशेष है, तीन मूढता है, ऐसे पंचवीस दोष है ॥ ३२ ॥
॥ अव आठ मद अर आठ मल कहे है ॥ दोहा ॥8 जातिलाभ कुल रूप तप, बल विद्या अधिकार।इनको गर्वजु कीजिये, यह मद अष्टप्रकार ॥ ३३॥
चो०-अशंका अस्थिरता वंछा। ममता दृष्टि दशा दुरगंछा ॥
वत्सल रहित दोष पर भाखे।चित्त प्रभावना मांहि न राखे ॥३४॥ अर्थ जाति, लाभ, कुल, रूप, तप, बल, विद्या, अधिकार, इनका गर्व करना यह आठ महाशा 7 मद है ॥ ३३ ॥ शास्त्रमें संशय, धर्म, अस्थिरता, विषयकी वांछा, देहमें ममत्व, अशुभकी ग्लानि, ॐ ज्ञानीका द्वेष, परकी निंदा, ज्ञानका निषेध, ये आठ मल है ॥ ३४ ॥
॥ अव पट आयतन अर तीन मूढता कहे है ॥ दोहा ।कुगुरु कुदेव कुधर्म धर, कुगुरु कुदेव कुधर्म। इनकी करे सराहना, इह षडायतन कर्म ॥ ३५॥ हैं देव मूढ गुरु मूढता, धर्म मूढता पोष । आठ आठ षद् तीन मिलि, ये पचीस सव दोष ॥३६॥ है अर्थ-कुगुरु, कुदेव, अर कुधर्म, इन तीनौंकी अर तीनौके भक्तकी प्रशंसा करना सो छह
आयतन है ॥ ३५॥ सुदेव कैसा है अर कुदेव कैसा है इनका जानपणा नही सो मनुष्य देवमूढ है, . * सुगुरु कैसा है अर कुगुरु कैसा है इनका जानपणा नही सो मनुष्य गुरुमूढ है, धर्म कैसा है अर अधर्म |5||
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