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समय
सार.
अ०१३
क्षय उपशम करे। सातई प्रकृति जाके उदै, सो वेदक समकित परे ॥ ४२॥ है अर्थ-ऊपरके कवित्तमें कही है तिस मोहनीयके सात प्रकृतीका उपशम जिसके होय सो उपशम ॥१३७॥
- सम्यक्त है । अर सात प्रकृतीका क्षय करे सो क्षायक सम्यक्त अक्षय है । अर सात प्रकृतीम कछु ।
प्रकृतीका क्षय अर कछु प्रकृतीका उपशम कर राखे है । सो क्षयोपशम सम्यक्त है ते मिश्ररूप ॐ सम्यक्तके रसळू आस्वादे है । अर छह प्रकृतीका उपशप करे अथवा क्षय करें अथवा क्षयोपशम: ६ करे अर एक प्रकृतीका उदय होय सो वेदक सम्यक्त है ॥ ४२ ॥
॥ अव सम्यक्तके नव भेद है सो कहे है ।। दोहा । सोरठा ॥क्षयोपशम वर्ते त्रिविधि, वेदक चार प्रकार ।क्षायक उपशम जुगल युत, नौधा समकित धार॥४३॥ " चार क्षपेत्रय उपशमे, पण क्षय उपशम दोय । क्षै पद उपशम एकयों, क्षयोपशम त्रिक होय ॥४॥
जहांचार प्रकृति क्षपे, दै उपशम इक वेद । क्षयोपशम वेदक दशा, तासु प्रथम यह भेद ॥४५॥ 5 पंच क्षपे इक उपशमे, इक वेदे जिह ठगेर । सो क्षयोपशम वेदकी, दशा दुतिय यह और ॥४॥
क्षय षट् वेदे इक जो, क्षायक वेदक सोय, । पट उपशम इकविदे, उपशम वेदक होय ॥१७॥ टू अर्थ-क्षयोपशम सम्यक्तके तीन भेद, वेदक सम्यक्तके चार भेद, क्षायक सम्यक्तका एक भेद हैं अर उपशम सम्यक्तका एक भेद, ऐसे सम्यक्तके नव भेद है ॥ ४३ ॥ अव क्षयोपशमके तीन भेद * कहे है-अनंतानुबंधीकी चार प्रकृति क्षय करे अर दर्शन मोहकी तीन प्रकृती उपशम करे सो प्रथम
क्षयोपशम सम्यक्त है॥॥ अनंतानुवंधीकी चार अर मिथ्यात्वकी एक ऐसे पांच प्रकृतीका क्षय करे अर , दर्शन मोहके दोय प्रकृतीका उपशम करे सो द्वितीय क्षयोपशम सम्यक्त है ॥२॥अनंतानुबंधकी चार
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