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समय॥१३५॥
॥ अव सम्यक्तके अष्ट स्वरूप है तिनके नाम कहे है ॥ दोहा ॥
समकित उतपति चिन्ह गुण, भूषण दोष विनाश। अतीचार जुत अष्ट विधि, वरणो विवरण तास । 'अर्थ – सम्यक्त, उत्पत्ति, चिन्ह, गुण, भूषख, दोष, नाश, अतिचार, ये आठ स्वरूप है ॥ २६ ॥ ' ॥ अंत्र सम्यक्त, उत्पत्ति, चिन्ह, अर गुण इनका स्वरूप कहे है | चौपाई ॥ दोहा ॥सत्य प्रतीति अवस्था जाकी । दिन दिन रीति गहे समताकी ॥
छिन छिन करे सत्यको साको। समकित नाम कहावे ताको ॥ २७ ॥ कैतो सहज स्वभावके, उपदेशे गुरु कोय । चहुगति सैनी जीवको, सम्यक् दर्शन होय ॥२८॥ आपा परिचै विर्षे, उपजे नहि संदेह । सहज प्रपंच रहित दशा, समकित लक्षण एह ॥ २९ ॥ करुणावत्सल सुजनता, आतम निंदा पाठ । समता भक्ति विरागता, धर्म राग गुण आठ ॥३०॥
अर्थ — जिसकूं आत्माकी सत्य प्रतीति उपजे है, अर दिन दिन प्रती ज्यादा ज्यादा समता धारे है। अर जो क्षणक्षणर्मे न पलटे ऐसे शुद्ध परिणाम करे है, तिसका नाम सम्यक्त है ॥ २७ ॥ कोईकूं सहज स्वभावसे सम्यक्त उपजे है अर कोईकूं गुरुके उपदेशसे सम्यक्त उपजे है । ऐसे चारों गती में सैनी (मन) है तिस जीवकूं सम्यग्दर्शन होय है ॥ २८ ॥ आत्म अनुभवमें संशय नहि उपजे । अर कपट रहित वैराग्य अवस्था होय ये सम्यक्तके लक्षण है ॥ २९ ॥ करुणा, मैत्री, सज्जनता, स्वलघुता, साम्यभाव, श्रद्धा, उदासीनता, धर्मप्रेम, ये सम्यक्तके आठ गुण है ॥ ३० ॥
॥ अव सम्यक्तके पांच भूषण अर पंचवीस दूषण है सो कहे है ॥ दोहा ॥ - चित्त प्रभावना भावयुत, हेय उपादे वाणि । धीरज हरष प्रवीणता, भूषण पंच वखाणि ॥ ३१ ॥
सार•
अ० १३
॥१३५॥