________________
द
समय- ॥१३॥
1%%
%EROCKEDSECRUSSEMROG
सासांदन गुणस्थान यह, भयो समापत बीय। मिश्रनाम गुणस्थान अब, वर्णन करूं त्रितीय ॥२१॥
सार. हूँ अर्थ-ऐसे दूजें सासादन नामा-गुणस्थानका कथन समाप्त भया ॥२॥
अ०१३ ॥अथ तृतीय मिश्र गुणस्थान प्रारंभ ॥३॥ स० ३१ सा॥उपशमि समकीति कैतो सादि मिथ्यामति, दुईनको मिश्रित मिथ्यातं आइ गहे हैं। अनंतानुबंधी चोकरीको उदै नांहि जामें, मिथ्यात समै प्रकृति मिथ्यात न रहे हैं । जहां सदहन सत्यासत्य रूप सम काल, ज्ञानभाव मिथ्याभाव मिश्र धारा वहे है ।। याकि थीति अंतर मुहूरत उभयरूप, ऐसो मिश्र गुणस्थान आचारज कहे है ॥२२॥
अर्थ-उपशम सम्यक्ती• मिश्र मिथ्यात्व प्रकृतीका उदय आजायतो सम्यक्तते छूटि तिसकू मिश्र गुणस्थान प्राप्त होय है, अथवा सादि मिथ्यात्वी है सो मिथ्यात्व प्रकृतीका अभाव करे अर फेर *जो मिश्रमिथ्यात्व प्रकृतीका उदय आजायतो तिसकू मिश्र गुणस्थान होंय है । इस मिश्र गुणस्थानमें || , अनंतानुबंधी चोकडीका तथा मिथ्यात्व प्रकृतीका तथा सम्यक् प्रकृती मिथ्यात्वका उदय नही, मात्र मिश्र 8 मिथ्यात्व प्रकृतीका उदय है । यहां समकालमें सत्य अर असत्य दो,रूप श्रद्धान रहे है, अर ज्ञानभावर
तथा मिथ्यात्वभाव इन दोनूकी मिश्रधारा वहे है। इस गुणस्थानकी जघन्य तथा उत्कृष्ट स्थिति है अंतर्मुहूर्तकी है, [जघन्य स्थिति एक समयकी है, ऐसा एक प्रतीमें लिखा है.] ऐसे मिश्र गुणस्थानका है स्वरूप आचार्यजीने कह्यो है ॥ २२॥ . ॐ मिश्रदशा पूरण भई, कही यथामति भाखि। अब चतुर्थ गुणस्थान विधि, कहूं जिनागम साखि २३
॥१३॥ __ अर्थ-ऐसे तीजे मिश्र गुणस्थानका कथन यथामति कह्या सो समाप्त भया ॥ ३ ॥
E ERRORSCORROGRESCRACCOR