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...कुगुरु, गिने समानजु कोयानमै भक्तिसुसवनकू, विनै मिथ्यात्वी सोय ॥१३॥ , जो नाना विकल्प गहे, रहे हियें हैरान । थिर है तत्वन सदहे, सो जिय संशयवान ॥ १४॥ अ० १३ जाको तन दुख दहलसे,सुरति होत नहि रंच । गहलरूप वर्ते सदा, सोअज्ञान तिर्यंच ॥ १५॥
अर्थ-सात नय है तिसमें कोइ एक नयका पक्ष ग्रहण करके आपके जानपणामें गर्क होय अर आपकू तत्ववेत्ता कहवाय । सो मनुष्य प्रत्यक्ष एकांत मिथ्यात्वी है ॥ ११ ॥ जो सिद्धांत ग्रंथके वचन 8 उथापन करके आप नवीन कुमतकू स्थापे । अर अपके सुयश होनेके कारण आपकू गुरुपणा माने सो ६ विपरीत मिथ्यात्वी है ॥ १२ ॥ सुदेव अर कुदेवकू तथा सुगुरु अर कुगुरुकूँ जो कोई समान समझेर है है । अर तिन सबकुं नमै है भक्ति करे है सो विनय मिथ्यात्वी है॥ १३ ॥ जो अनेक संशय ग्रहण है करके हैराण होय रहे है। अर अपने चित्तकू स्थिर करके तत्वकी श्रद्धा नहि करे सो संशय मिथ्यात्वी
है ॥ १४ ॥ जो पर शरीरके दुःखकी रंच मात्रभी याद करेनही। अर जो सदा गहल (निर्दय ) रूप ॐ वर्ते सो अज्ञान मिथ्यात्वी पशू समान है ॥ १५ ॥
॥अव सादि मिथ्यात्वका अर अनादि मिथ्यात्वका स्वरूप कहे है ॥ दोहा - हूँ पंच भेद मिथ्यात्वके, कहे जिनागम जोय । सादि अनादि स्वरूप अव, कहूं अवस्था दोय ॥१६॥ है जो मिथ्यात्व दल उपसमें ग्रंथि भेदि बुध होय। फिरि आवे मिथ्यात्वमें,सादि मिथ्यात्वी सोय॥१७॥ हैं जिन्हे ग्रंथि भेदी नही, ममता मगन सदीव । सो अनादि मिथ्यामती, विकल वहिर्मुखजीव॥१०॥
कह्या प्रथम गुणस्थान यह, मिथ्यामत अभिधान।अल्परूप अव वर्णवू, सासादन गुणस्थान ॥१९॥ ___अर्थ-ऐसे मिथ्यात्वके पांच भेद जिनशास्त्रानुसार देखिके कहे । अब सादि मिथ्यात्व अर अनादि
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