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समय
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॥ अव ज्ञानके क्रियाका स्वरूप कहे है दोहा ॥ -
विनसि अनादि अशुद्धता, होइ शुद्धता पोख । ता परणतिकों बुध कहे, ज्ञानक्रियासों मोख ||३६|| अर्थ — आत्मामें अनादिकालसे अज्ञानकी अंशुद्धता है तिसका जहां नाश होय तहां ज्ञानकी शुद्धता पुष्ट होय । ऐसी आत्माकी शुद्ध परणती होय सो ज्ञानकी क्रिया है । तिस परणतीकूं बुधजन कहे है की इस ज्ञानक्रियासे मोक्ष होय ॥ ३६ ॥
॥ अब सम्यक्तसे क्रमक्रमे ज्ञानकी पूर्णता होय सो कहे है ॥ दोहा ॥
जगी शुद्ध सम्यक् कला, बगी मोक्ष मग जोय । वहे कर्म चूरण करे, क्रम क्रम पूरण होय ॥३७॥ जाके घट ऐसी दशा, साधक ताको नाम । जैसे जो दीपक घरे, सो उजियारो धाम ॥ ३८ ॥
अर्थ — जिसकूं शुद्ध सम्यक्तकी कला जगी है सो मोक्षमार्गकूं चले है । अर सोही क्रमे क्रमे कर्मका चूर्ण करके पूर्ण परमात्मा होय है ॥ ३७ ॥ जैसे घरमें जो दीपक धरे तो उजियाला होयही हैं । जिसके हृदयमें ऐसी सम्यक्तदशा भई तिसका नाम साधक है ॥ ३८ ॥
॥ अव सम्यक्तकी महिमा कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥
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जाके घट अंतर मिथ्यात अंधकार गयो, भयो परकाश शुद्ध समकित भानको ॥ जाकि मोह निद्रा घटि ममता पलक फटि, जाणे निज मरम अवाची भगवानको ॥ 'जाको ज्ञान तेज बग्यो उद्दिम उदार जग्यो, लग्यो सुख पोष समरस सुधा पानको ॥ ताहि सुविचक्षणको संसार निकट आयो, पायो तिन मार्ग सुगम निरवाणको ॥३९॥ अर्थ”” जिसके 'हृदयमें अनादि कालका मिथ्यात्व अंधकार हुता सो गया है, अर शुद्ध सम्यक्तरूप
सार
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