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________________ समय ॥१२६॥ ॥ अव ज्ञानके क्रियाका स्वरूप कहे है दोहा ॥ - विनसि अनादि अशुद्धता, होइ शुद्धता पोख । ता परणतिकों बुध कहे, ज्ञानक्रियासों मोख ||३६|| अर्थ — आत्मामें अनादिकालसे अज्ञानकी अंशुद्धता है तिसका जहां नाश होय तहां ज्ञानकी शुद्धता पुष्ट होय । ऐसी आत्माकी शुद्ध परणती होय सो ज्ञानकी क्रिया है । तिस परणतीकूं बुधजन कहे है की इस ज्ञानक्रियासे मोक्ष होय ॥ ३६ ॥ ॥ अब सम्यक्तसे क्रमक्रमे ज्ञानकी पूर्णता होय सो कहे है ॥ दोहा ॥ जगी शुद्ध सम्यक् कला, बगी मोक्ष मग जोय । वहे कर्म चूरण करे, क्रम क्रम पूरण होय ॥३७॥ जाके घट ऐसी दशा, साधक ताको नाम । जैसे जो दीपक घरे, सो उजियारो धाम ॥ ३८ ॥ अर्थ — जिसकूं शुद्ध सम्यक्तकी कला जगी है सो मोक्षमार्गकूं चले है । अर सोही क्रमे क्रमे कर्मका चूर्ण करके पूर्ण परमात्मा होय है ॥ ३७ ॥ जैसे घरमें जो दीपक धरे तो उजियाला होयही हैं । जिसके हृदयमें ऐसी सम्यक्तदशा भई तिसका नाम साधक है ॥ ३८ ॥ ॥ अव सम्यक्तकी महिमा कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥ 21 जाके घट अंतर मिथ्यात अंधकार गयो, भयो परकाश शुद्ध समकित भानको ॥ जाकि मोह निद्रा घटि ममता पलक फटि, जाणे निज मरम अवाची भगवानको ॥ 'जाको ज्ञान तेज बग्यो उद्दिम उदार जग्यो, लग्यो सुख पोष समरस सुधा पानको ॥ ताहि सुविचक्षणको संसार निकट आयो, पायो तिन मार्ग सुगम निरवाणको ॥३९॥ अर्थ”” जिसके 'हृदयमें अनादि कालका मिथ्यात्व अंधकार हुता सो गया है, अर शुद्ध सम्यक्तरूप सार अ० १२ ॥१२६॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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