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________________ सूर्यका प्रकाश भया है। जिसकी मोह निद्रा घट गई है अर ममताकी पलक लगीथी सो खुल गई है, ताते अपने अवांची भगवान (आत्मा) का मर्म जान्या है । अर जिसळू ज्ञानका प्रकाश हुवा है तिसते । श्रेष्ठ उद्यम जाग्रत भया है, अर साम्यभावरसरूप अमृत पानका सुख पुष्ट भया है । तिस सम्यक्ती || का विचक्षणके संसारका अंत निकट आया है, तथा तिसनेही मोक्षका सुगम मार्ग पाया है ॥ ३९॥ . ... ॥ अव ज्ञानकी महिमा कहे है ॥ सवैया ३१ सा - जाके हिरदेमें स्यादवाद साधना करत, शुद्ध आतमको अनुभौ प्रगट भयो है। जाके संकलप विकलपके विकार मीटि, सदाकाल एक भाव रस परिणयो है ।। ' 'जाते बंध विधि परिहार मोक्ष अंगिकार, ऐसो सुविचार पक्ष सोउ छोडि दियो है। जाकी ज्ञान महिमा उद्योत दिन दिन प्रति, सोहि भवसागर उलंधि पार गयो है ॥४०॥ का अर्थ-जिसके हृदयमें स्याहाद स्वरूपके अभ्यासते, शुद्ध आत्माका अनुभव प्रगट हुवा है। अर जिसके संकल्प विकल्पके विकार मिटिके, सदाकाल एक ज्ञानभावका रस परिणम्या है । ताते कर्मबंध 5 विधिका परिहार जो संवर तिस संवरकू धन्य है, अर निस्पृह दशाते मोक्षके सुविचारका पक्ष अंगिकार कीया है फेर तिस पक्षयूँही छोडि दीया है । ऐसे जाके ज्ञानकी महिमा दिन दिन प्रती उद्योत हुई है, सोहि भव सागर उलंघी पार पोहोंचो ऐसे जानना ॥ ४०॥ . . . ॥ अव अनुभवमें नयका पक्ष नही सो कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥ अस्तिरूप नासति अनेक. एक थिररूप, अथिर इत्यादि नानारूप जीव कहिये । दीसे एक नयकी प्रति पक्षी अपर दूजी, नैको न दीखाय वाद विवादमें रहिये ॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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