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समय-निजरूप आतमशक्ति, पर रूप पर वस्त। जिन्ह लखिलीनो पेच यह,तिन्ह लखि लियो समस्त४५ ।।
8 अर्थ -आत्माकी ज्ञानशक्ती ऐसी है की सो' आपनेकोहूं जाने अर पर देहादिककोंहूं जाने है, ताते । अ० १२ ॥१२॥ ज्ञान अर ज्ञेय ये वचन भेद है ते भारी भ्रम उपजावे है पण वस्तु एक है । ज्ञेयकी दशा दो प्रकारको
कही, एक निज (आत्म ) रूप अर एक पररूप ॥ १४ ॥ निजरूप आत्मशक्ती है और सब पर वस्तु है । जिसने यह पेच जानलीया तिसने समस्त तत्त्व जान लीया ॥ ४५ ॥
॥ अव स्याद्वादते जीवका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा॥करम अवस्थामें अशुद्ध सों विलोकियत, करम केलंकसों रहित शुद्ध अंग है ॥ उभै नै प्रमाण समकाल शुद्धा शुद्धरूप, ऐसो परयाय धारी जीव नाना रंग है ॥ एकही समैमें त्रिधा रूंप पैं तथापि याकि, अखंडित चेतना शकति सरवंग है ॥ यहै स्यादवांद याको भेद स्यादवादी जाने, मूरख न माने जाको हियोग भंग है ॥ ४६॥
अर्थ-यह जीवकू कार्माण देह अवस्थासे देखियेतो अशुद्ध दीखे है, अर कार्माण देहळू छोडि , है केवल जीव... देखियेतो शुद्ध अंग दीखे है । अर येक कालमें इन दोर्ने अवस्थासे देखियेतो शुद्ध ॐ तथा अशुद्धरूप दीखे है, ऐसे देहधारी जीवकी नाना प्रकार अवस्था है । एकही समयमें जीव त्रिधा 6 रूप ( अशुद्धरूप, शुद्धरूप, शुद्ध अशुद्धरूप, ) दीखे है, पण तीनौ अवस्था जीवकी चेतनाशक्ति ६ अखंडित सर्व अंगमें भरी रही है। यही स्याहाद है इसका स्वरूप जे स्याहादी ज्ञाता होय तेही जाणे । ॥१२॥ हूँ है, अर जिसका हृदय सम्यग्दर्शन रहित है सो अज्ञानी स्याहादके स्वरूपकू नहि जाणे है ॥ ४६ ॥ है . निहचे दरव दृष्टि दीजे तव एक रूप, गुण परयाय भेद भावसों बहुत है ॥:
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