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गंध अर स्पर्श ये भिन्न भिन्न नही अखंड है । तैसे जीवद्रव्यका द्रव्य क्षेत्र काल अर भावके भेदते भिन्नपणा नही अखंड है । द्रव्यरूपते आत्मा अखंड है, आत्माकी असंख्यात प्रदेश अवगाहना है ताते क्षेत्ररूपते आत्मा अखंड है, आत्मा कालरूपते पण त्रिकालवर्त्ती अखंड है, अर ज्ञायक भावरू - पतेहूं आत्मा अखंड है, द्रव्य क्षेत्र काल अर भाव ऐसे चारी रूपसे आत्मा अखंड सत्तायुक्त है ॥४२॥ ॥ अव ज्ञानका अर ज्ञेयका व्यवहारसे अर निश्चैसे स्वरूप कहे है । सवैया ३१ सा ॥
को ज्ञानवान कहे ज्ञानतो हमारो रूप, ज्ञेय षट् द्रव्य सो हमारो रूप नांही है ॥ एक नै प्रमाण ऐसे दूजी अब कहूं जैसे, सरस्वती अक्षर अरथ एक ठांही है । तैसे ज्ञाता मेरो नाम ज्ञान चेतना विराम, ज्ञेयरूप शकति अनंत मुझ मांही है | ता कारण वचनके भेद भेद कहे कोउ, ज्ञाता ज्ञान ज्ञेयको विलास सत्ता मांही है ॥ ४३ ॥ अर्थ — कोई ज्ञानवान कहे ज्ञान है सो आत्माका स्वरूप है, अर ज्ञेय ( षट् द्रव्य ) है सो | आत्माका स्वरूप नही । ऐसे एक व्यवहारनयका प्रमाण कह्या अब दूजे निश्चयनयका प्रमाण कहूंहूं, | जैसे वचन अक्षर अर अर्थ एक ठीकाणे है । तैसे ज्ञाता है सो आत्माका नाम है अर ज्ञान है सो चेतनाका प्रकार है, अर ते ज्ञान ज्ञेयरूप परिणमे है सो शक्ती है ऐसे ज्ञेयरूप परिणमनेकी अनंतशक्ती | | आत्मामें है । ताते वचन के भेदते ज्ञानमें अर ज्ञेयमें भेद है ऐसा कोई भला कहो, परंतु निश्चयते । ज्ञाताके ज्ञानका अर ज्ञेयका विलास एक आत्मा के सत्ता मेंही है ॥ ४३ ॥
चो० - स्वपर प्रकाशक शकति हमारी । ताते वचन भेद भ्रम भारी ॥ . ज्ञेय दशा द्विविधा परकाशी । निजरूपा पररूपा भासी ॥ ४४ ॥