________________
समय॥११॥
-%AE%ARCLASSESSAGESRAESARIES
P . ये नव रस येई नव नाटक, जो जहां मम सोही तिहि लायक ॥ ४॥
. अर्थ-प्रथम श्रृंगार रस है अर दूजो वीर रस है, तीजी करुणा रस है सो करुणा रस समस्त 5/जीवकू सुखदायक है। चौथा हास्य रस अर पांचवा रौद्र रस है, छठ्ठा बीभत्स रस है सो चित्तकू ६ अप्रिय लगे। सातवा भय रस अर आठवा अद्भूत रस है, नवमा शांत रस है सो सब रसका नायक द है। ऐसे नव रस है ते नाटकरूप है, जो प्राणी जिस रसमें मग्न होय सोही रस प्रीय लागे है ॥४॥
॥ अव नव भव रसके स्थानक कहे है ॥ सवैया ३१ सा॥2. शोभा श्रृंगार वसे वीर पुरुषारथमें, कोमल हियेमें करुणा रस वखानिये ॥ 1. आनंदमें हास्य रुंड मुंडमें विराजे रुद्र, बीभत्स तहां जहां गिलानि मन आनिये ॥
चिंतामें भयानक अथाहतामें अदभूत, मायाकी अरुचि तामें शांत रस मानिये ॥ येई नव रस भवरूप येई भावरूप, इनिको विलक्षण सुदृष्टि जगे जानिये ॥ ५॥ अर्थ-शोभा श्रृंगार रस रहे अर पुरुषार्थमें वीर रस रहे, कोमल हृदयमें करुणा रस रहे ऐसे है कह्या है । आनंदमें हास्य रस रहे अर रणसंग्राममें रुद्र रस रहे, मनकू घाण उपजे तिसमें बीभत्स
रस रहे । चिंतामें भय रस है अर आश्चर्यमें अद्भूत रस रहे, वैराग्यमें शांत रस रहे है सो प्रमाण है। 5 ये नव रस है ते भव (संसार ) रूप पण है अर येई नव रस भाव (ज्ञान) रूप पण है, भव रसका ६ अर भाव रसका लक्षण जे है ते.तो जगतमें सुदृष्टीसे जाने जाय है ॥५॥
॥ अव नव भाव रसके स्थानक कहे है ॥ छपै छंद ॥गुण विचार शृंगार, वीर उद्यम उदार रुख । करुणा रस सम रीति, हास्य
%A9-%AE%EA%ARRESTEGORI
॥११॥