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समय
॥११८॥
___ अर्थ-कोई. दुर्बुद्धीवाला कहे पहिले जीव नही था, सो जब आकाश पृथ्वी जल अग्नि अर वायु मार. * इन पंच तत्त्वसे देह ऊपजे तब तिस देहमें ज्ञान, शक्तिरूप जीव आय ऊपजे है । अर जबतक देह रहे । अ०११ - तबतक देहधारी जीव कहावे है, फेर जब देहका नाश होयगा तब जीव ज्योतिरूपी है सो ज्योतिमें जोत मिल जायगी । तिसकू सुबुद्धीवाला कहे ये जीव अनादिका देह धारी है नवीन नहि उपज्या है, अर
जीवकू जब शुद्धज्ञान प्राप्त होयगा । तब परका ममत्व त्यागिके अपने आत्मस्वरूपकुं जानेगा, अर ६ S अष्ट कर्मका क्षय करिके मोक्षस्थान पावेगा ॥ २३ ॥
॥ अव आत्मा अचेतन है इस ग्यारवे नयका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा॥कोउ पक्षपाती जीव कहे ज्ञेयके आकार, परिणयो ज्ञान ताते चेतना असत है ॥
ज्ञेयके नसत चेतनाको नाश ता कारण, आतमा अचेतन त्रिकाल मेरे-मत है । ___ पंडित कहत ज्ञान सहज अखंडित है, ज्ञेयको आकार धरे ज्ञेयसों विरत है ॥
चेतनाके नाश होत सत्ताको विनाश होय, याते ज्ञान चेतना प्रमाण जीव सत है ॥२४॥ हूँ अर्थ-कोई पक्षपाती कहे ज्ञान है सो ज्ञेयके आकाररूप होय है, ताते ज्ञानचेतना असत है।
अर ज्ञेयका नाश होते ज्ञानचेतनाका नाश होय है, ताते आत्मा सदा ज्ञान रहित अचेतन है ऐसे है । मेरे मत है । तिस एकांत पक्षपातीकू पंडित कहे ये ज्ञान, है सो स्वभावतेही अखंडित है, अर ज्ञेयके ॥११॥ • आकारकू धारे है तोहूं ज्ञेयसे भिन्न है। जो ज्ञानचेतनाका नाश मानिये तो जीवके सत्ताका नाश ए होयगा, ताते ज्ञानचेतना युक्तही जीवतत्त्व प्रमाण है ॥ २४ ॥
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