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॥ अव पांचों जीवका वर्णन कहे है | चौपाई ॥ दोहा ॥ - घा सिद्ध कहे सब कोऊ । सूंघा ऊंधा मूरख दोऊ ॥ घूंघा घोर विकल संसारी। चूंघा जीव मोक्ष अधिकारी ॥ २२ ॥ चूंघा साधक मोक्षको, करे दोष दुख नाश । लहे पोष संतोषसों, वरनों लक्षण तास ॥ २३ ॥
अर्थ — डूंघा जीवकूं सब कोई सिद्ध कहे है, सूंघा अर ऊंघा ये दोऊ प्रकारके जीव अज्ञानी है । घूंघा जीव विकल घोर संसारी है, अर चूंघा जीव मोक्षका अधिकारी है ॥ २२ ॥ चूंघा जीव मोक्षका साधक है, सो दोष अर दुःखकूं नाश करे है । तथा संतोषसे सुखकी पुष्टता लहे है ॥ २३ ॥ अव चूंघा जीव मोक्षका साधक है तिसका लक्षण कहे है || दोहा ॥
कृपा प्रशम संवेग दम, अस्ति भाव वैराग । ये लक्षण जाके हिये, सप्त व्यसनको त्याग ||२४|| अर्थ — दया, मंद कषाय, धर्मानुराग, इंद्रिय दमन, देव गुरु अर शास्त्रकी श्रद्धा, तथा वैराग्य | इत्यादि लक्षण जिसके हृदयमें है अर सप्त व्यसनका त्याग करे है सो मोक्षका साधक है ॥ २४ ॥ ॥ अब सप्त व्यसनके नाम कहे है | चौपाई ॥ दोहा ॥ -
जूवा अमिष मदिरा दारी । आखेटक चोरी परनारी ॥
येई सप्त व्यसन दुखदाई । दुरित मूल दुर्गतिके भाई ॥ २५ ॥ दर्वित ये सातों व्यसन, दुराचार दुख धाम । भावित अंतर कल्पना, मृषा मोह परिणाम ||२६|| अर्थ - जूवा, मांस भक्षण, मदिरा पान, वेश्या संग, शिकार, चोरी, परस्त्रीसंग, ये सात व्यसन है । ते महादुख देनेवाले है, पापका मूल अर दुर्गतीका भाई है ॥ २५ ॥ ऐसे सप्त व्यसन देहसे प्रत्यक्ष