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समय
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अर्थ – आचार्य कहे है है शिष्या ! जिनेश्वर के वचनका विस्तार है, सो अगम्य अपार है हम कितना कहेंगे । हंमांरीं बोलनेकी ताकद नही ताते चुप्प रहना भला है, अर बोलीये तो प्रयोजन है जितना बचन बोलना । बहुतं बोलने से नाना प्रकारके विकल्प ऊठे है, ताते जितना कार्य है तितना कथन कहना बर्स है | शुद्ध आत्माके अनुभवका अभ्यास करना, येही परमार्थ अर मोक्षमार्ग है ॥ १२४ ॥ शुद्धतम अनुभौ क्रिया, शुद्ध ज्ञान हग दोर । मुक्ति पंथ साधन वहै, वागजाल सव और ॥१२५॥ - अर्थ / शुद्ध आत्मानुभव करना सोही शुद्ध दर्शन ज्ञान अर चारित्र है । तथा येही मोक्षमार्गका साधन है और सब वचनाडंबर है ॥ १२५ ॥
॥ अव आत्माका कैसा अनुभव करना सो कहे है ॥ दोहा ॥जगतं चक्षु आनंदमय, ज्ञान चेतना भास । निर्विकल्प शाश्वत सुथिर, कीजे अनुभौ तास ॥ १२६ ॥ | अचल अखंडित ज्ञानमय, पूरण वीत ममत्व | ज्ञानगम्य वाघा रहित, सो है आतम तत्व ॥ १२७॥ अर्थ- - आत्मा है सो जगतमें चक्षु जैसा आनंदमय है अर ज्ञान चेतनारूप प्रकाशमान है । भेदरहित शाश्वत अर स्थीर है ऐसा आत्मानुभव करना ॥ १२६ ॥ अचल अखंडित अर ज्ञानमय है, तथा पूर्ण समाधिवंत अर ममत्वरहित है । ज्ञानगम्य अर कर्मरहित है, सो आत्मतत्व है ॥ १२७ ॥ सर्व विशुद्धि द्वार यह, कह्यो प्रगट शिवपंथ । कुंदकुंद मुनिराजकृतः पूरण भयो जु ग्रंथ ॥१२८॥
अर्थ- जिस द्वारते आत्माकं सर्व विशुद्धि प्राप्त होय ऐसे अधिकारका यह कथन कीया है, सो प्रत्यक्ष मोक्षका मार्ग कया है । श्रीकुंदकुंद मुनिराजकृत समयसार नाटक ग्रंथ संपूर्ण भयो ॥ १२८ ॥ ॥ इति श्रीसमयसार नाटकको दशमों सर्व विशुद्धि द्वारं बालबोध सहित समाप्त भयो ॥ १० ॥
सार
अ० १०
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