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समय
सारः
अ०११
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॥ अव ज्ञानका कारण ज्ञेय है इस प्रथम नयका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥कोउ मूढ कहे जैसे प्रथम सवारि भीति, पीछे ताके उपरि सुचित्र आल्यों लेखिये ॥
तैसे मूल कारण प्रगट घट पट जैसो, तैसो तहां ज्ञानरूप कारिज विसेखिये ॥ ६. ज्ञानी कहे जैसी वस्तु तैसाही स्वभाव ताको, ताते ज्ञान ज्ञेय भिन्न भिन्न पद पेखिये॥
कारण कारिज दोउ,एकहीमें निश्चय पै, तेरो मत साचो व्यवहार दृष्टि देखिये ॥ १३ ॥ हूँ
अर्थ-कोई ( मीमांसक ) एक नयका ग्राही अज्ञानी कहे कि-प्रथम भीत• सुधारिये, पीछे तिस है भीत उपर आच्छा चित्र निकले अर खराब भीत उपर खराब चित्र निकले । तैसे ज्ञान उपजनेका मूल
कारण ज्ञेय (घट पटादिक वस्तु ) है, जैसे जैसे पदार्थ ज्ञानके सन्मुख होयतैसे तैसे ज्ञान जाननेका 5 कार्य करे है । तिस एकांतीकू स्याहादी ज्ञानी कहे जैसी वस्तु होय तिसका तैसाही स्वभाव होय है,
ज्ञानका स्वभाव जाननेका है अर ज्ञेयका स्वभाव अज्ञान जड है ताते ज्ञान अर ज्ञेय भिन्न भिन्न पद जानना । निश्चय नयते कारण अर कार्य ये दोउ एकमें है, पण व्यवहार नयते देखिये तो कारण विना टू कार्य होय नही ताते तेरा मत ( अभिप्राय ) साचा है ॥ १३ ॥
॥ अव आत्मा त्रैलोक्यमय है इस द्वितीय नयका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा॥___ कोउ मिथ्यामति लोकालोक व्यापि ज्ञान मानि, समझे त्रिलोक पिंड आतम दरव है। ___ याहीते खछंद भयो डोले मुखहू न बोले, कहे या जगतमें हमारोहि परव है ॥
तासों ज्ञाता कहे जीव जगतसों भिन्न है पैं, जगसों विकाशी तोही याहीते गरव है ॥ जो वस्तु सो वस्तु पररूपसों निराली सदा, निहचे प्रमाण स्यादवादमें सरव है ॥ १४॥
SA+80*964064639640649408796
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