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२-CRACKER
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अथ श्रीसमयसार नाटकको एकादशमो स्याद्वाद द्वार प्रारंभ ॥११॥
॥ अव श्रीअमृतचंद्र मुनिराज आपना हेतु कहे है । चौपाई ॥अद्भुत ग्रंथ अध्यातम वाणी । समुझे कोई विरला प्राणी ॥
यामें स्यादवाद अधिकारा । ताको जो कीजे विसतारा ॥ १ ॥ - तोजु ग्रंथ अति शोभा पावे । वह मंदिर यह कलश कहावे ॥
तब चित अमृत वचन गढ खोले। अमृतचंद्र आचारज बोले ॥२॥ अर्थ-समयसार नाटक अध्यात्मवाणी अद्भुत ग्रंथ है इसिका मर्म कोई विरला ज्ञानी समझे ।। इस ग्रंथमे गर्भित स्याहादका कथन है पण तिसकुँ विस्तारसे वर्णन करिये तो ॥ १॥ ये ग्रंथ विशेप शोभा पावे जैसे वह मंदिर अर यह कलश कहावेगा। ऐसे चित्तमे गंभीर अर अमृत समान वचनका विचार करि अमृतचंद्र आचार्य बोले ॥२॥ कुंदकुंद नाटक विषे, कह्यो द्रव्य अधिकार । स्यादाद नै साधि मैं, कहूं अवस्था बार ॥३॥ कहूं मुक्ति पदकी कथा, कहूं मुक्तिको पंथ । जैसे घृत कारिज जहां, तहां कारण दधि मंथ ॥ १॥
अर्थ-श्रीकुंदकुंदाचार्यकृत समयसार नाटकमें जीव-अर-अजीव द्रव्यका स्वरूप कह्यो । अब मैं ! स्याहाद नय द्वार अर साध्य साधक अवस्था द्वार ऐसे दोय द्वार कहूंहूं ॥ ३॥ स्याहाद द्वारमें चतुर्दश नयका अर साध्य साधक द्वारमें मुक्तिपद ( साध्य) का अर मुक्तिपथ ( साधक ) का कथन कहूंहूं। जैसे घृत कार्य वास्ते दधि मंथनका कारण करना चाहिये ॥ ४ ॥
SESEADOS
दर-दररलर