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" अर्थ-एक शांत रसमें सब रसका गर्भित समावेश हुवा ऐसा यह समयसार नाटक ग्रंथ कुंदकुं- सार. समय
IA दाचार्यजीने कह्यो है । इस ग्रंथके सुनतेही जीवकू सुपंथ अर कुपंथ समझे है ॥ ८॥ ॥११२॥
अ०१० चौ०-चरते ग्रंथ जगत हित काजा । प्रगटे अमृतचंद्र मुनिराजा॥ __ . तव तिन ग्रंथ जानि अति नीका । रची वनाई संस्कृत टीका ॥ ९॥ दो०।६ सर्व विशद्धि द्वारलों, आये करत वखान । तव आचार भक्तिसों, करे ग्रंथ गुण गान ॥१०॥ है अर्थ-ऐसे जगतके जीवका हितकारक यह ग्रंथ प्रसिद्ध भया । इस ग्रंथको अति श्रेष्ठ जानि * अमृतचंद्र मुनिराजने संस्कृत टीका बनाई ॥९॥ सर्व विशुद्धी द्वारपर्यंत संस्कृत व्याख्यान कीया । । D अर भक्तिसे इस ग्रंथका गुणानुवाद गाया ॥१०॥
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॥ इति श्रीकुंदकुंदाचार्यानुसार समयसार नाटक समाप्त ॥5
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॥११२॥