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॥ अव समयसार नाटक ग्रंथकी अंतिम प्रशस्ती कथन ॥ चौपई ॥ दोहा॥कुंदकुंद मुनिराज प्रवीणा । तिन यह ग्रंथ इहालो कीना ॥ गाथा बद्धसों प्राकृत. वाणी । गुरुपरंपरा रीत वखाणी ॥१॥
भयो ग्रंथ जगमें विख्याता । सुनत महा सुख पावहिं ज्ञाता॥ ...... जे नव रस जगमांहि वखाने । ते सव समयसार रस माने॥२॥
प्रगटरूप संसारमें, नव रस नाटक होय । नव रसे गर्भित ज्ञानमें, विरला जाने कोय ॥३॥ | अर्थ-श्रीकुंदकुंद मुनिराज अध्यात्म शास्त्रमें प्रवीण भये तिनौमें यह ग्रंथ सर्व विशुद्धि द्वारपर्यंत गाथाबद्ध प्राकृत वाणीमें कीया । जिन वाणीकू गुरु संप्रदायसे जैसे वर्णन करते आये तैसे व्याख्यान कीया ॥ १ ॥ (श्रीसीमंदरस्वामीकी वाणी सुनिके यह ग्रथं कीया ऐसी संप्रदायमें बात है.) ताते
कुंदकुंदाचार्यका ग्रंथ जगतमें विख्यात भया । इस ग्रंथकू सुनते ज्ञाताजन महा सुख पावे है । जगतमें बाजे नव रस कंह्या है ते सब रस इस समयसार नाटकके रसमें समाई रहे है ॥ २ ॥ संसारमें ये वात
प्रसिद्ध है की जे नाटक होय है ते नव रस युक्त होय है। नव रसमें शांत रस सबका नायक है शांत
रसमें ज्ञान है ताते एक शांत रसमें नव रस गर्मित है पण तिसक्यूँ कोई विरला जाने है ॥३॥ M..:, . ॥ अव नव रसके नाम कहे है ॥ कवित्त ।। ... ', प्रथम श्रृंगार वीर दूजो रस, तीजो रस करुणा सुख दायक ॥ . . हास्य चतुर्थ. रुद्र रस पंचम, छठम रस वीभत्स विभायक ॥
सप्तम भय अष्टम रस अद्भुत, नवमो शांत रसनिको-नायक ॥
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