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समय
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. ॥ अव सप्त भयके नाम कहे है ॥ दोहा ।* इहभव-भय परलोक भय, मरण वेदनाजात। अनरक्षा अनगुप्त भय, अकस्मात भय सात ॥४७॥ है अर्थ-इसभवका भय, परभवका भय, मरणका भय, वेदनाका भय, अनरक्षा भय, अनगुप्त भय, अकस्मात् भय, ये सात भयके नाम है ॥ ४७ ॥
. ॥ अव सात भयके जुदेजुदे स्वरूप कहे है ॥सवैया ३१ सा ॥- ' दशधा परिग्रह वियोग चिंता इह भव, दुर्गति गमन भय परलोक मानीये ॥ प्राणनिको हरण मरण भै कहावै सोइ, रोगादिक कष्ट यह वेदना वखानीये॥
रक्षक हमारो कोउ नांही अनरक्षाभय, चोर भै विचार अनगुप्त मन आनीये॥ __. अनचिंत्यो अबहि अचानक कहांधो होय, ऐसो भय अकस्मात जगतमेंजानीये।। ४८॥ ___ अर्थ-धन धान्यादि दश प्रकारके परिग्रहका वियोग होनेकी चिंता करना सो इसभवका भय है हैं ॥१॥ दुर्गतिमें जन्म होनेकी चिंता करना सो परभवका भय है ॥२॥ प्राण जानेकी चिंता करना सो हैं मरणका भय है ॥ ३ ॥ रोगादिकके .कष्ट होनेकी चिंता करना सो वेदनाका भय है ॥ ४॥ हमारी * रक्षा करनेवाला कोई नही है ऐसी चिंता करना सो अनरक्षक भय है ॥ ५॥ चोर वा दुश्मन आवे 3 तो कैसे बचेंगे ऐसी चिंता करना सो अनगुप्त भय है ॥६॥ संसारमें अचानक कुछ.दगा होयगा क्या ? % ऐसी चिंता करना सो अकस्मात भय है ॥ ७॥ ऐसे जगतमें सात प्रकारका भय है सो जानना ॥४८॥
॥ अव इसभवके भय निवारणकू मंत्र ( उपाय ) कहे है ॥१॥ छपै छंद ॥नख शिख मित परमाण, ज्ञान अवगाह निरक्षत । आतम अंग अभंग संग, पर धन इम अक्षत । छिन भंगुर संसार विभव, परिवार भार जसु । जहां उतपति
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