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सार
अ०१०
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अर्थ-जीवके लक्षण, भेद नहीं है सब जीव एक समान है ताते वेदपाठीने माना सो अद्वैत समय
अंग सत्य है अर जीवके उदयमें अनेक गुणके तरंग ऊठे है ताते - मीमांसक मतवालेने माना सो ॥१६॥
& उदय अंग सत्य है, जीवमें अनंत शक्ती है सो जहां तहां गतीमें प्रवर्ते है ताते नैयायिकमतने माना।
उद्धत अंग सत्य है । जीवका पर्याय क्षण क्षणमें बदले है ताते बौद्धमतीने माना क्षणीक अंग सत्य ई है, जीवके परिणाम सदा चक्र समान फिरे है तिसळू काल द्रव्य साह्य है ताते शिवमंतीने माना त काल अंग सत्य है। ऐसे आत्म द्रव्यके अनेक अंग है, तिसमें एक अंगळू माने अर एक अंग, नहि
माने सो एकांत पक्ष धरनेवाला. कुमती है । अर एकांत पक्षळू छोडि जीवके सर्वागळू खोजे (धुंडे) .5 है सो सुमति है, खोजी जीवे वादी मरे यह कहावत है सो सत्य है ॥४४॥
॥ अव स्याद्वादका स्वरूप कथन करे है । सवैया ३१ सा ॥एकमें अनेक है अनेकहीमें एक है सो, एक न अनेक कछु कह्योन परत है। करता अकरता है भोगता अभोगता है, उपजे न उपजत मरे न मरत है ॥
वोलतः विचरत न वोले न विचरे कछु, भेखको न भाजन पै भेखसो धरत है। __ऐसो प्रभु चेतन अचेतनकी संगतीसो, उलट पलट नटवाजीसी करत है ॥ ४५ ॥
अर्थ-एक द्रव्यमें अनेक पर्याय है अर अनेक पर्यायमें एक द्रव्य है, याते हर कोई वस्तु । 16 सर्वथा एक है अथवा सर्वथा अनेक है ऐसे कह्या नहि जाय हैं। (कथंचित एक है अथवा कथं-
हूँ चित अनेक है ऐसे कह्या जाय हैं) व्यवहारते जीव का है अर निश्चयते अकर्ता है तथा व्यवहारते है है भोक्ता है अर निश्चयते-अभोक्ता है, व्यवहारते उपजे है अर निश्चयते नहि उपजे है तथा व्यवहारते,
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॥९६॥
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