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समय-
सार
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है। जैसे भिन्न भिन्न मोती है, पण तिस मोती सूतमें पोयेसे हार कहा है ॥ ३९ ॥ जैसे सूतमें पोये विना मोतीकी माल नहि होय है । तैसे स्याहादी विना कोई मोक्षमार्ग साघे नहीं है ॥ ४ ॥
॥ अब मत भेदको कारण कहे है ॥ दोहा ।।- . हूँ पद स्वभाव पूर्व उदै, निश्चै उद्यम काल । पक्षपात मिथ्यात पय, सर्वगी शिव चाल ॥४१॥ है अर्थ-कोई तो आत्माके स्वभावकू माने है ॥ ३ ॥ कोई पूर्व कर्मके उदयवं माने है ॥ २ ॥ है कोई निश्चयकू माने है ॥ ३ ॥ कोई व्यवहारळू माने है ॥ ४ ॥ कोई कालवू माने है ॥ ५ ॥ ऐसे १ पक्षपात करि एक एकळू माने है सो तो मिथ्यात्वका मार्ग है, अर जो पांचीहूं नयनूं माने है सो मोक्षका मार्ग है ॥ ११ ॥
॥ अव छहों मतका विचार कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥एक जीव वस्तुके अनेक गुण रूप नाम, निज योग शुद्ध पर योगों अशुद्ध है।
वेदपाठी ब्रह्म कहे मीमांसक कर्म कहे, शिवमति शिव कहे वोध कहे बुद्ध है ॥ __ जैनी कहे जिन न्यायवादी करतार कहे, छहों दरसनमें वचनको विरुद्ध है ॥
वस्तुको स्वरूप पहिचाने सोई परवीण, वचनके भेद भेद माने सोई शुद्ध है ॥४२॥ ___ अर्थ-जीव वस्तु एक है पण तिसके गुण रूप अर नाम अनेक है, जीव स्वतः शुद्ध है पण है परके संयोगते अशुद्ध होय है । वेदपाठी जीवकुं ब्रह्म कहे है अर मीमासकमती जीवहूं कर्म कहे है, शिवमती जीवळू शिव कहे है अर बौद्धमती जीवनूं बुद्ध कहे है । जैनमती जीवनूं जिन कहे है अर न्यायवादी जीववं कर्ता कहे है, ऐसे छहों दर्शन ( मत) में वचनके भेदते मात्र विरुद्ध दीसे है ।
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