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समय-
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त्यागि करिके, राग अर द्वेषमें राचि देहादिक पर वस्तुकू नहिं धारण करेगो। जो आत्माकू अम्लान से ज्ञान ( केवल ज्ञान) विद्यमान प्राप्त भये तो, तैसाही आगामि अनंत काल पर्यंत रहेगो ॥ १०७ ॥
. ॥ अव सिद्ध जीव फेर अवतार लेय नही सो सिद्ध करे है ॥ सवैया ॥ ३१ सा ॥जंबहीते चेतन विभावसों उलटी आप, समे पाय अपनो स्वभाव गहि लीनों है ॥ तवहीते जोजोलेने योग्य सोसो सव-लीनो, जो जो त्यागयोग्य सोसोसव छांडि दीनोहै। लेवेको न रही ठोर त्यागवेकों नाहिं और, वांकी कहां उबोजु कारज नवीनो है। संगत्यागि अंगत्यागि वचन तरंग त्यागि, मन सांगि बुद्धिसागि आपा शुद्ध कीनो है ॥१०॥
अर्थ-अनादि कालसे आत्मा मिथ्यात्व भावरूप विभावमें रमि रह्यो हुतो सो जबसे उलटे, अर ॐ अपना शुद्ध स्वभाव ग्रहण करे है । तबसे जो जो लेने योग्य ज्ञान दर्शनादिक भाव है ते ते सब 8 लीये, अर जो जो त्यागने योग्य राग द्वेषादिक भाव है ते ते सब छोड दीये है । लेने योग्य कंछ रहा। ६ नही अर छोडने योग्यहूं कूछ रहा नहीं तो, बाकी नवीन कार्य करनें क्या रह्या की फेर अवतार 6 ६ लेवापडे है। परिग्रहका संग छोड देहका ममत्व त्याग कीया अर वचनके विकल्प त्याग कीये, मनके
तरंग त्यागि इंद्रिय जनित बुद्धीका त्याग कीया इत्यादिक सब पर वस्तुकू त्यांग करिके आत्मा शुद्ध 2 कीया है सो शुद्धआत्मा अवतार कैसा धारण करेगा ? ॥१०८॥
॥ अव मोक्षका मूल कारण द्रव्यलिंग (नग्न भेप) नहीं है सो कहे है ॥ दोहा॥ॐ शुद्ध ज्ञानके देह नही, मुद्रा भेष न कोइ । ताते कारण मोक्षको द्रव्यलिंग नहि होइ ॥१०॥ ॐ द्रव्यलिंग न्यारो प्रगट, कला वचन विज्ञान । अष्ट रिद्धि अष्ट सिद्धि, एहूं होइ न ज्ञान ॥११०॥
SANSॐॐॐॐॐॐ
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