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॥ अव अज्ञानी है सो आत्म स्वरूप देखे नही पुद्गलमें मग्न रहे सो कहे है ॥ दोहा ॥वापर स्वभावमें मगन रहे, ठाने राग विरोध । धरे परिग्रह धारना, करे न आतम शोध ॥७०॥ | अर्थ-अज्ञानी है सो पुद्गल स्वभावमें मग्न होय है, राग अर द्वेषमें रहे है । तथा मनमें सदा परिग्रहकी इच्छा धरे है, परंतु आत्म स्वभावका शोध नहि करे ॥ ७० ॥
॥ अव अज्ञानीकू दुर्मती अर ज्ञानीकू सुमति उपजे सो कहे है चौपई ॥ दोहा॥मूरखके घट दुरमति भासी । पंडित हिये सुमति परकासी ॥
दुरमति कुबजा करम कमावे।सुमति राधिका राम रमावे ॥७१॥ ठाकुना कारी कूबरी, करे जगतमें खेद । अलख अराधे राधिका, जाने निज पर भेद ॥ ७२॥ 18 अर्थ-मुर्खके हृदयमें दुर्मति उपजे है, अर ज्ञानीके हृदयमें सुमतिका प्रकाश होय है । दुर्मती - कुब्जा ( दासी ) है सो नवीन कर्म कमावे है, अर सुमति राधिका ( राणी ) है सो आत्मारामकू रमावे है ॥ ७१ ॥ दुर्मती कुजा कारी अर कुबडी है, सो जगतमें खेद उपजावे है, अर सुमति राधिका है, सो आत्माराम• आराधे है तथा स्व परका भेद ज्ञाने है ॥ ७२ ॥
॥ अव दुर्मतीके गुण कुब्जा (दासी) के समान है सो दिखावे है ॥ सवैया ३१ सा ॥कुटिला कुरूप अंग लगी है पराये संग, अपनो प्रमाण करि आपहि विकाई है ॥ गहे गति अंधकीसि सकती कमंधकीसि, बंधको बढाव करे धंधहीमें धाई है ॥ रांडकीसि रीत लिये मांडकीसि मतवारि, सांड ज्यों खछंद डोले भांडकीसि जाई है ॥ घरका न जाने भेद करे पराधीन खेद, याते दुरबुद्धी दासी कुवजा कहाई है ॥७३॥
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