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मस-टू राखे है । अर तिस चोपटकू अपने बुद्धि बलसे जीति होनेके स्थानमें धरे है, परंतु जो पासा पडेगा है। तिस पासाके आधीन चलनेका दाव है । तैसेही जगतके जीव अपने अपने स्वार्थके अर्थी, उद्यम
अ०१० ॥१०॥* करे है अर उपाय चिंतवे है । परंतु जैसा कर्म उपार्जन कीया होय, तिसके उदय माफिक फल है होय है, ऐसाही कर्मचक्रका स्वभाव है ॥ ७७ ॥
॥ अव विवेक चक्रके स्वभाव ऊपर सतरंजका दृष्टांत कहे है.॥ कवित्त ॥
जैसे नर खिलार सतरंजको, समुझे सब सतरंजकी घात ॥ 9. . .' चले चाल निरखे दोउ दल, महुरा गिणे विचारे मात ॥
तैसे साधु निपुण शिव पथमें, लक्षण लखे तजे उतपात ॥ है साधे गुण चिंतवे अभयपद, यह सुविवेक चक्रकी वात ॥ ७॥ ..
अर्थ-जैसे सतरंजको खेलनारो कोई मनुष्य होय सो, सतरंजके खेल संबधी अपने अर परके * रोणेकी समस्त घात समझे है। तथा अपने अर.परके दोऊ दल ऊपर नजर राखि चाल चाले है,
तथा अपना अर पराया वजीर हाथी घोडा प्यादा इनिका महुरा ध्यानमें राखि जीत होनेका विचार है
राखे है । तैसे मोक्ष मार्गके साधनारे जे निपुण ज्ञानी है ते मोक्षमार्गमें खेले है, लक्षणसे स्व (आत्म) हैं ६ स्वरूपकू अर परस्वरूपकू देखे है तथा मोक्ष मार्गमें उत्पाद ( विन्न ) रूप कार्य होय तिसकं छोडदेवे" है है । अर आत्म गुणका साधन करे तथा मोक्षपदका विचार करे है, यह विवेक चक्रका स्वभाव है ॥७॥ ॥१०२॥ है सतरंज खेले राधिका, कुना खेले सारि ।याके निशिदिन जीतवो, वाके निशिदिन, हारि ॥७९॥
जाके उर. कुना, वसे, सोई अलख अजान । जाके हिरदे राधिका, सो बुध सम्यकवान ॥८॥
GEFRIHESHIREITAI SUOI
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