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॥ अव सव वस्तुकी अव्यापकता कहे है ॥ चौपई ॥सकल वस्तु जगमें असहाई । वस्तु वस्तुसों मिले न काई॥
जीव वस्तु जाने जग जेती । सोऊ भिन्न रहे सव सेती ॥५०॥ अर्थ जगत जे जे वस्तु है ते सर्व असहाई है ताते कोई वस्तु काहू वस्तुसे मिले नहीं । जीव है सो जगतके सर्व वस्तुकू जाने है [ ज्ञानमें जगतकी सर्व वस्तु भासे है ] पण वस्तुसे ज्ञान मिले नहीं सबसे भिन्न रहे है ॥ ५० ॥
॥ अव जीव वस्तुका स्वरूप कहे है ॥ दोहा॥कर्मकरे फल भोगवे, जीव अज्ञानी कोइ । यह कथनी व्यवहारकी वस्तु स्वरूप न होइ ॥५१॥ All अर्थ-कोई अज्ञानी जीव है ते कर्म करे है अर तिस कर्मका फल भागे है। यह कथनी व्यवहारकी है पण [ कर्म करना अर तिस कर्मका फल भोगना ] यह जीव वस्तुका स्वरूप नही है ॥ ५१ ॥
॥ अव ज्ञानका अर ज्ञेयका लक्षण कहे है ॥ कवित्त ॥ज्ञेयाकार ज्ञानकी परणति, पैं वह ज्ञान ज्ञेय नहि होय ॥ ज्ञेयरूप षट् द्रव्य भिन्न पद, ज्ञानरूप आतम पद सोय ॥ जाने भेद भावसो विचक्षण, गुण लक्षण सम्यकदृग-जोय ॥
मूरख कहे ज्ञान महि आकृति, प्रगट कलंक लखे नहि कोय।। ५२॥ अर्थ—जैसा ज्ञेय ( घट पटादिक ) का आकार है तिस घटपदादिरूप ज्ञानका परिणमन होय है, पण ते ज्ञान है सो ज्ञेयरूप नहि होय है । अर ते ज्ञेय रूप जे षट् द्रव्य है सो भिन्न भिन्न स्वभावके