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वंछित मुक्ति तथापि मूढमति, विन समकित भव पारन पावत ॥ ९॥ | अर्थ-जो हृदय अंध अज्ञानी है सो अज्ञानके, भ्रमते अनेक मिथ्या विकल्प उपजावे है। अर एकांत पक्ष धारण करि आत्माकू कर्मका कर्ता मानि अधो गतिका पात्र होय है । अथवा कोई जिनमती द्रव्यलिंगि मुनि ज्ञान विना बाह्य क्रिया करे है अर आत्माकू कर्मका कर्त्ता माने है. सो मूढ है । यद्यपि मुक्तिकी वांछा करे है तथापि सम्यक्त ( भेदज्ञान ) विना मोक्ष नहि पावे है ॥ ९॥
. ॥ अव अकर्ता स्वरूप कहे है ॥ चौपई ॥ दोहा ॥. चेतन अंक जीव लखि लीना । पुद्गल कर्म अचेतन चीना ॥ . .
वासी एक खेतके दोऊ । जदपि तथापि मिले न कोऊ ॥ १०॥ निजनिज भाव क्रिया सहित, व्यापक व्याप्य न कोइ।कर्ता पुद्गल कर्मका, जीव कहांसे होइ ॥११॥ - अर्थ-जीवका लक्षण चेतन है अर पुद्गलका तथा कर्मका लक्षण अचेतन जड है । चेतन अर में अचेतन ये दोऊ एक क्षेत्रमें वसे है तथापि कोई कोउसे मिले नही है ॥ १० ॥ पदार्थ है सो अपने
अपने स्वभाव माफिक क्रिया करे है, इसिमें व्यापकपणा अर व्याप्यपणा कोई नहीं है । जो जीवको है अर पुद्गलको कोई व्यापक व्याप्यपणाका संबंधही नही है तो, जीव है सो पुद्गल कर्मका कर्ता कैसे होयगा ? ॥ ११ ॥
॥ अव कर्ता स्वरूप तथा अकर्ता स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥जीव अर पुद्गल करम रहे एक खेत, यद्यपि तथापि सत्ता न्यारी न्यारी कही है। लक्षण स्वरूप गुण परजै प्रकृति भेद, दूहुमें अनादि हीकी दुविधा व्है रही है।