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सूचे भ्रम वानि ठानि मूढनीसों पहिचानि, करे सुख हानि अरु खानी वद फेलकी॥ ___ ऐसीदेह याहीके सनेह याके संगतीसों, व्हेरहे हमारी मति कोल्हकैसे वैलकी ॥४०॥ का अर्थ-इस देहमें जगे जगे रक्तके कुंड अर केशके झुंड है, अर इस देहमें हाडकी थडी चुडले ||जैसी रची है । इह देह जरासा धका लगेतो फटिजाय है, मानूं कागदकी पूतली है अथवा जुनी
चादर है । इसीका ममत्व करनेसे भ्रम उपजे है पण मूढलोक इसका स्नेह करे है, यह देह सुखकी । हानी करनेवाली अर बदफैली ( काम क्रोध ) की खाण है। इसीके ममतासे अर स्नेहसे, हमारी मती | 5 कोल्हूके घाणीके बैल समान सदा भ्रमण करे है ॥ ४० ॥
॥ अव संसारी जीवकी गति कोल्हुके बैल समान है सो कहे है ॥ सवैया ३१ सा ।।पाठी वांधी लोचनीसों संचुके दबोचनीसों, कोचनीके सोचसों निवेदे खेद तनको ॥
धाइवोही धंधा अरु कंधा मांहि लग्यो जोत,वार वार आर सहे कायर व्है मनको॥ H भूख सहे प्यास सहे दुर्जनको त्रास सहे, थिरता न गहे न उसास लहे छिनको ॥ 3
पराधीन घूमे जैसे कोल्हूका कमेरा वैल, तैसाहि स्वभाव भैया जगवासी जनको ॥४१॥ 5 अर्थ-कैसा है कोल्हूका बैल ? जिसके नेत्र ऊपर ढकणा बांधे है अर गुह्य स्थानमें दबोचनीते। टोचे है, ताते वेदना होय है तोहूं शरीरकू थकवा देय नही । धंदेमें दौडता फिरे है अर खांदेपर
जोत है तिनते निकसने नहि पावे, अर वार वार मार सहे है ताते मनमें कायर हो रह्या है । भूख साप्यास अर दुर्जनका त्रास सहे है, पण क्षणभर उश्वास लेनेषं स्थिरता नही है। ऐसे कोल्डूके घाणीका
काम करनेवाला बैल पराधीन हुवा घूमे है, तैसाही जगवासी संसारी जीवका घूमनेका स्वभाव है ॥४॥