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समय
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। ॥ अव मोक्षके निकट है ते साहुकार है अर दूर है ते दरिद्री है सो कहे है दोहा॥जो पुमान परधन हरे, सो अपराधी अज्ञ । जो अपने धन व्यवहरे, सो धनपति सर्वज्ञ ॥१७॥ ९ परकी संगति जो रचे, बंध बढावे सोय । जो निज सत्तामें मगन, सहज मुक्त सो होय ॥१०॥ * अर्थ-जो पुद्गलके गुणरूप धन• धरे है, सो अपराधी ( चोर ) अज्ञ है । अर जो आपने ज्ञान १ गुणरूप धनते व्यवहार करे है सो ज्ञानी - साहुकार है ॥ १७ ॥ जो पर संगतीमें राचे है, सो कर्मबंधळू बढावे है। अर जो आत्मसत्तामें मग्न है, सो सहज मुक्त ( बंध रहित ) होय है ॥ १८ ॥
____अव वस्तुका अर सत्ताका स्वरूप कहे है ॥ दोहा ॥8 उपजे विनसे थिर रहे, यहुतो वस्तु वखान । जो मर्यादा वस्तुकी, सो सत्ता परमाण ॥ १९॥ है * अर्थ-जो उपजे है विनसे है अर स्थिर रहे है, तिसकू वस्तु (द्रव्य )कहिये है । अर जो द्रव्यकी हैं मर्यादा ( अचलपणा ) है तिस गुणकू सत्ता कहिये है ॥ १९ ॥
॥ अब पटू द्रव्यके सत्ताका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥लोकालोक मान एक सत्ता हैं आंकाश द्रव्य, धर्म द्रव्य एक सत्ता लोक परमीत है। लोक परमान एक सत्ता है अधर्म द्रव्य, कालके अणु असंख्य सत्ता अगणीत है ।। पुदगल शुद्ध परमाणुकी अनंत सत्ता, जीवकी अनंत सत्ता न्यारी न्यारी थीत है ॥
कोउ सत्ता काहुसों न मिले एकमेक होय, सबेअसहाय यों अनादिहीकी रीत है।॥२०॥ अर्थ-आकाश द्रव्यकी सत्ता ( मर्यादा ) लोक तथा अलोकपर्यंत एक है ॥ १॥ धर्म द्रव्यकी सत्ता लोकपर्यंत एक है ॥ २ ॥ अधर्म द्रव्यकी सत्ताहूं लोकपर्यंत एक है ॥ ३ ॥ काल द्रव्यके अणु 5
SHRIRHARASHRARS
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