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5- अर्थ-जिसके दुर्बुद्धीका नाश होय हृदयमें भेदज्ञान हुवा है। अर जिसने आत्मारामका अनुभव कीया है सो जीव अपराधी नही है, साहुकार है ॥ २९॥
'. ॥ अव ज्ञानीका विचार कहे है । सवैया ३१ सा ॥- जिन्हके धरम ध्यान पावक प्रगट भयो, संसै मोह विभ्रम विरख तीनो वढे हैं।
जिन्हके चितौनि आगेउदै स्वान भुसि भागे, लागेन करम रज ज्ञान गज चढे हैं। जिन्हके समझकि तरंग अंग आगमसे, आगममें निपुण अध्यातममें कढे हैं।
तेई परमारथी पुनीत नर आठों याम, राम रस गाढ करे यह पाठ पढे हैं ॥ ३०॥
अर्थ-जिसके हृदयमें धर्मध्यानरूप अग्नि प्रज्वलित हुवा है, तातै संशय मोह अर भ्रमरूप तीनों ६. वृक्ष दग्ध हुये है । अर जिसके बार भावनाके चितवन आगे कर्मका उदयरूप कुत्ता भूखि भूखि भागे । हैं है, अर जे ज्ञानरूप गजेंद्र ऊपरि चढे है ताते तिनकू कर्मरूप धूल लगे नहीं। अर जिसके समझकी है।
तरंग शास्त्रअंगसे प्रमाण है, आगम आभ्यासमें निपुण है अर आत्माके अनुभव करानेवाले परिणाम जिसके सदा खडे है । अर जे आठौ प्रहर रामरसमें मग्न होय आत्मानुभवका पाठ पढे है, सोही || सम्यकदृष्टी मनुष्य परम पवित्र है ॥ ३०॥
जिन्हके चिहुंटी चिमटासी गुण चूनवेको, कुकथाके सुनिवेकों दोउ कान मढे हैं । जिन्हके सरल चित्त कोमल वचन बोले, सौम्यदृष्टि लिये डोले मोम कैसे गढे हैं। जिन्हके सकति जगि अलख अराधिवेकों, परम समाधि साधिवेकों मन बढे हैं। : तेई परमारथ पुनीत नर आठों याम, राम रस गाढ करे यह पाठ पढे हैं॥३१॥