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Fhoghochwa
RECIPECARRORE
अर्थ-ज्ञानी है सो-परमात्माके गुण श्रवण करे, गुणका व्याख्यान करे, गुणका चितवन करे, गुणका अध्ययन करे, गुणमें तल्लीन होय, गुणका स्मरण रखे, गुणका गर्व नहि करे, साम्यभाव धरे, अर आत्मस्वरूमें एक हो जाय ( देहळू पर माने ) है, ऐसे नव प्रकारे भक्तीके भेद है सोला ज्ञानी करे है ॥ ७ ॥
॥ अव जो ज्ञाता अनुभवी है ताके परिचयके वचन कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥कोऊ अनुभवी जीव कहे मेरे अनुभौमें, लक्षण विभेद भिन्न करमको जाल है ॥ जाने आप आपकोंजु आपकरी आपविखे, उतपति नाश ध्रुव धारा असराल है। सारे विकलप मोसों न्यारे सरवथा मेरे, निश्चय स्वभाव यह व्यवहार चाल है ।। मैंतो शुद्ध चेतन अनंत चिनमुद्रा धारि, प्रभूता हमारि एकरूप तीहं काल है ॥८॥ अर्थ-आत्माका अनुभव हुवा सो अनुभवी जीव ऐसे कहे की, मेरे अनुभवमें लक्षण भेदते । कर्मजाल भिन्न दीसवा लाग्यो है । अर आपकू आपते आपमें जाने है की, उत्पाद विनाश अर ध्रुव । ये तीन प्रबल धारा मेरेमें निरंतर वहे है सो विकल्प है मेरेते सर्वथा न्यारे है, ये तीन धारा व्यवहार नयकी चाल है। मैंतो शुद्ध स्वरूप अनंत ज्ञानका धरनेवाला है, ये मेरे ज्ञान चेतनकी प्रभूता तीन । कालमें एकरूप अचल है ॥ ८॥
॥ अव आत्माके चेतना लक्षणका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा॥निराकार चेतना कहावे दरशन गुण, साकार चेतना शुद्ध गुण ज्ञान सार है ।। चेतना अद्वैत दोउ चेतन दरव माहि, सामान्य विशेष सत्ताहीको विसतार है ॥