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समान संध्या समय लागे है । अथवा जैसे कुत्तेकू दहीके मढे समान वमन प्रिय लागे है, अथवा / जैसे शुकरकू पक्वान्न समान विष्टा प्रिय लागे है । अथवा जैसे काकपक्षीकू द्राक्ष समान नींबकी निंबोली प्रिय लागे है, अथवा जैसे बालककू पुराणसमान दंत कथा प्रिय लागे है, अथवा जैसे हिंसककू हिंसा धर्मसमान प्रिय लागे है, तैसे अज्ञानीकू पुण्यबंध मोक्षसमान प्रिय लागे है ॥२०॥
॥ अव अधमाधम मनुष्यका स्वभाव कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥कुंजरकों देखि जैसे रोष करि भुंके खान, रोष करे निर्धन विलोकि धनवंतकों ॥ रैनके जगैय्याकों विलोकि चोर रोष करे, मिथ्यामति रोप करे सुनत सिद्धांतकों॥ हंसकों विलोकि जैसे काग मन रोप करे, अभिमानि रोप करे देखत महंतकों ॥ सुकविकों देखि ज्यों कुकवि मन रोष करे, त्योंहि दुरजन रोप करे देखि संतकों ॥२१॥
अर्थ-जैसे हाथी• देखि रोष करि श्वान भुंके है, अथवा जैसे धनवंतवू देखि दरिद्री मनमें l रोष करे है । अथवा जैसे रात्रिके जगैयाळू देखिके चोर रोष करे है, अथवा सिद्धांत शास्त्रकू सुनिके मिथ्यात्वी मनमें रोष करे है । अथवा जैसे हंसकूँ देखि काकपक्षी रोप करे है, अथवा जैसे महंत पुरुषकू देखि अभिमानी मनमें रोष करे है । अथवा जैसे सुकविकू देखि कुकवि रोष करे है, तैसे सत्पुरुषकू देखि दुर्जन मनुष्य मनमें रोष करे है ॥ २१ ॥ पुनः
सरलकों सठ कहे वकताकों धीठ कहे, विनै करे तासों कहे धनको आधीन है ॥ क्षमीको निवल कहें दमीकों अदत्ति कहे, मधुर वचन बोले तासों कहे दीन है ॥
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