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अर्थ-इस संसारमें अनादिका अज्ञानी जीव है सो यौँ कहें की ये शुभ अर अशुभ कर्म मेरा है| इनको कर्त्ता मैं हूं ऐसे क्रियाको पक्षपात करे है । अर पीछे जब अंतरंगमें सुबुद्धिका प्रकाश होय मनवचन कायके योगसे उदासीन होय है, तब परका ममत्व मिटाय पर्यायमें आत्मबुद्धि थी ताक़े छोडदे है। अर आत्माका जो निर्भय स्वभाव है ताकू ग्रहण कर आत्मानुभवके रसमें मग्नहोय है, तथा व्यवहारमें । प्रवृत्ति करे है तोहूं अंतरंग विषं श्रद्धातो निश्चयमें राखे है। ऐसे करते भ्रमकी दोरी तोड कर अर आत्मधर्मको धारण कर मोक्षपदसे प्रीति जोरे है, अर पुद्गल कर्मकरे ताकू देख साक्षीदार होय है । पण मैं कर्मका कर्ता है ऐसा कदापि नही माने है ॥ ४ ॥ KIn शिष्य पूछे है की चेतन अर अचेतन दोनही एक क्षेत्रमें रहे है अर कर्म करे है सो चेतनकू कर्मको अकर्ता कैसे कहाय ? ताको गुरु कहे है की ज्ञान शक्तीसे अकर्ता कहवाय है ताते ज्ञानको सामर्थ्य कहे है ॥ ३१ सा ॥
जैसे जे दरव ताके तैसे गुण परजाय, ताहीसों मिलत पैं मिले न काहुं आनसों ॥ | जीव वस्तु चेतन करम जड जाति भेद, ऐसे अमिलाप ज्यों नितंव जुरे कानसों॥
ऐसो सुविवेक जाके हिरदे प्रगट भयो, ताको भ्रम गयो ज्यों तिमिर भागे भानसों॥ 5 · सोइ जीव करमकों करतासो दीसे पैहि, अकरता कह्यो शुद्धताके परमानसों ॥ ५॥ ___ अर्थ-जैसो जो द्रव्य होय तिसके तैसेही गुणपर्याय होय है, अर ते गुणपर्याय तिसही द्रव्यसूं मिले है पण अन्य द्रव्यसूं कदाचित् नहि मिले है जैसे कोई स्निग्ध घृतादिक द्रव्य स्निग्धगुणवाला द्रव्यके साथ मिले पण रुक्षगुणवालाके साथ न मिले है । तैसे ये जीवद्रव्य चेतन जाति है, अर कर्म | जड पुद्गल जाति है ऐसे इनके जातिभेद है, ताते चेतन तथा जडको अमिलनता है सो इनका कोई
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