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॥ अथ समयसार नाटकको पंचम आश्रवद्वार प्रारंभ ॥५॥ जापाप पुन्यकी एकता, वरनी अगम अनूप । अव आश्रव अधिकार कछु, कहूं अध्यातम रूप ॥१॥
अर्थ-पाप पुन्यकी एकता है सो अगम अर अनुपम है तिसका वर्णन कीया। अब आश्रवका अर अध्यात्म स्वरूपका अधिकार कछुक कहूंहूं ॥ १ ॥ Kril ॥ अव आश्रव सुभटको नाश करनहार ज्ञान सुभट है तिस ज्ञानकुं नमस्कार करे है ॥ ३१ सा ॥
जे जे जगवासी जीव थावर जंगम रूप, ते ते निज वस करि राखे वल तोरिके ॥ l महा अभिमानी ऐसो आश्रव आगाध जोधा, रोपि रण थंभ ठाडो भयो मूछ मोरिके ॥ आयो तिहि थानक अचानक परम धाम, ज्ञान नाम सुभठ सवायो वल फेरिके ॥
आश्रव पछान्यो रणथंव तोडि डायो ताहि, निरखी वनारसी नमत कर जोरिके ॥२॥ IS अर्थ-जे जे जगतमें रहणार त्रस तथा थावर लहान मोठे जीव है, ते ते समस्तके बलयूँ तोडिके Kआश्रव जोद्धाने आपने वश करि राख्या है। ऐसा महा अभिमानी आश्रवरूपी अगाध जोडा है, सोही
जोद्धा जगतमें रणथंभकू रोपि मूछ मरोडि ठाडो भयो है अर जगत्रयमें मोकुं जीतनेवाला कोऊ नहि ।
ऐसा कहे है। कोई काल पाय तिस स्थानकमें अचानक महा तेजस्वी ऐसा, ज्ञान नामा सुभट। MI( आश्रवका प्रतिपक्षि) सवायो वल फेरिके आश्रवसे युद्ध करनेछ् आयो । अर आवत प्रमाणही ला आश्रवकू पछाड्यो तथा रणथंभ तोड डायो, ऐसे ज्ञानरूप सुभटको देखिके बनारसीदास हाथ जोडिके
S४०॥ नमस्कार करे है ॥२॥
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